Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (आहितस्य) आहितवाची (पूर्वपदस्य) पूर्वेपद के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (न:) नकार के स्थान में (ण:) णकार आदेश होता है।
उदा०-इक्षुवाहणम् । ईंख की गाड़ी। शरवाहणम्। सरकण्डों की गाड़ी। दर्भवाहणम् । डाभ की गाड़ी।
गाड़ी में जो पदार्थ डालकर ढोया जाता है वह इक्षु आदि 'आहित' कहलाता है।
सिद्धि-इक्षुवाहणम् । यहां इक्षु और वाहन शब्दों का षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से आहितवाची 'इक्षु' पूर्वपद से परवर्ती तथा अट्-व्यवायी (उ-व्-आ-ह) 'वाहन' के नकार को णकार आदेश होता है। शर-पूर्वपद में-शरवाहणम् । दर्भ-पूर्वपद में-दर्भवाहणम् । णकारादेशः
(६) पानं देशे।। प०वि०-पानम् ११ देशे ७।१। अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, णः, पूर्वपदादिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां पूर्वपदस्य रषाभ्यां पानं नो देशे णः।
अर्थ:-संहितायां विषये पूर्वपदस्य रेफषकाराभ्यां परस्य पानमित्येतस्य नकारस्य स्थाने देशेऽभिधेये णकारादेशो भवति।
उदा०-पीयते इति पानम् । क्षीरं पानं येषां ते क्षीरपाणा उशीनरा: । सुरापाणा प्राच्या: । सौवीरपाणा बालीका: । कषायपाणा गन्धारा: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पूर्वपदस्य) पूर्वपद के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (पानम्) पान शब्द के (न:) नकार के स्थान में (ण:) णकार आदेश होता है।
उदा०-क्षीरपाणा उशीनराः। उशीनर प्रदेश के लोग दुग्धपान के शौकीन हैं। सुरापाणा प्राच्या: । प्राच्य भारत के लोग सुरापान के शौकीन हैं। सौवीरपाणा बाहलीकाः। बाहलीक प्रदेश के लोग सौवीर (खट्टी कांजी) पीने के शौकीन हैं। कषायपाणा गन्धाराः। गन्धार प्रदेश के लोग कषाय (कसैला) पान के शौकीन हैं।
सिद्धि-क्षीरपाणा: । यहां क्षीर और पान शब्दों का षष्ठीतत्पुरुष समास है-क्षीरं पानं येषां ते क्षीरपाणा: । 'पानम्' शब्द में 'पा पाने (भ्वा०प०) धातु से कृत्यल्युटो बहुलम् (३।३।११३) से कर्म कारक में ल्युट्' प्रत्यय है-पीयते यत् तत्-पानम् । इस सूत्र से क्षीर पूर्वपद के रेफ से परवर्ती तथा अट् और पवर्ग व्यवायी (अ-प्-आ) 'पान' के नकार को देश अभिधेय में णकार आदेश होता है।
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