Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, णः, उपसर्गात्, अनितेरिति चानुवर्तते।
अन्वय:-संहितायाम् उपसर्गस्य रषाभ्यां साभ्यासस्यानितेरुभयोर्नयोर्ण: ।
अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्य रेफषकाराभ्यां परस्य साभ्यासस्याऽनितेरुभयोर्नकारयो: स्थाने णकारादेशो भवति।
उदा०-(अन्) प्र-स प्राणिणिषति। स प्राणिणत् । परा-स पराणि-- णिषति। स पराणिणत्।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (उपसर्गस्य) उपसर्ग के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (साभ्यासस्य) अभ्यास से युक्त (अनिते:) अनिति धातु के (उभयोः) दोनों (नयो:) नकारों के स्थान में (ण:) णकार आदेश होता है।
___ उदा०-(अन्) प्र-स प्राणिणिषति । वह श्वास लेना चाहता है। स प्राणिणत् । उसने श्वास दिलाया। परा-स पराणिणिषति । वह श्वास को दूर करना चाहता है। स पराणिणत् । उसने श्वास को दूर कराया, मरवाया।
सिद्धि-(१) प्राणिणिषति । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक 'अन प्राणने (अदा०प०) धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तकादिच्छायां वा (३।१।७) से 'सन्' प्रत्यय है। 'आर्धधातुकस्येड्वलादे:' (७।२।३५) से सन्' को इडागम है। अजादेर्द्वितीयस्य' (६।१।२) के नियम सन्यडो:' (६।१।९) से नि' शब्द को द्विर्वचन होता है। प्र+नि-नि+ष, इस स्थिति में इस सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती साभ्यास अन् धातु के दोनों नकारों को णकार आदेश होता है। परा-उपसर्ग में-पराणिणिषति।
सिद्धि-(२) प्राणिणत् । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त 'अन्' धातु से हेतुमति च (३।१।२६) से णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त 'आनि' धातु से लुङ्' प्रत्यय है। 'णिश्रिद्रुभ्य: कर्तरि चङ् (३।१।४८) से 'च्लि' के स्थान में 'चङ्' आदेश है। 'जेरनिटि' (६।४।५१) से 'णि' का लोप होता है। चडि' (६।१।११) से धातु को द्विवचन करते समय, उसे द्विर्वचनेऽचिं' (१।१।५९) से स्थानिवत् मानकर पूर्वोक्त नियम से अजादि धातु के द्वितीय एकाच अवयव को द्विर्वचन करने में नि' शब्द को द्विवचन होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। परा-उपसर्ग में-पराणिणत् । णकारादेशः
(२१) हन्तेरत्पूर्वस्य ।२१। प०वि०-हन्ते: ६।१ अत्पूर्वस्य ६।१। स०-अत् पूर्वो यस्मात् स:-अत्पूर्वः, तस्य-अत्पूर्वस्य (बहुव्रीहिः)।
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