Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः झशि' (८।४।५३) से भकार को जश् बकार आदेश है। 'यस्य विभाषा' (७।२।१५) से इडागम का प्रतिषेध है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(३) विसृपः । यहां वि-उपसर्गपूर्वक सृप्तृ गतौ' (भ्वा०प०) धातु से सृपितृदो: कसुन्' (३।४।१७) से 'कसुन्' प्रत्यय है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(४) विसर्जनम् । यहां वि-उपसर्गपूर्वक सृज विसर्गे (तु०प०) धातु से 'ल्युट् च' (३।३ ।११५) से भाव अर्थ में ल्युट्' प्रत्यय है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(५) दिविस्पृशम् । यहां 'स्पृश संस्पर्शे (तु०प०) धातु से 'स्पृशोऽनुदके क्विन् (३।२।५८) से 'क्विन्' प्रत्यय है। क्विन्' प्रत्यय का सर्वहारी लोप होता है। स्पृश्+अम्-स्पृशम्। 'दिविस्पृशम्' यहां 'तत्पुरुषे कृति बहुलम्' (६।३।१२) से सप्तमी-विभक्ति का अलुक् होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(६) निस्पृहम् । यहां नि-उपसर्गपूर्वक 'स्पृह ईप्सायाम् (चु०प०) धातु से प्रथम 'सत्यापपाश०' (३।१।२५) से चौरादिक णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् 'णिजन्त स्पृहि धातु से एरच्' (३।३।५६) से 'अच्' प्रत्यय और णेरनिटि' (६।४।५१) से णिच्’ का लोप होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(७) सवने सवने । यहां पुत्र अभिषवे (स्वाउ०) धातु से ल्युट् च' (३।३ ।११५) से भाव अर्थ में 'ल्युट्' प्रत्यय है। सप्तमी विभक्ति में-सवने । 'नित्यवीप्सयो:' (८।१।४). से वीप्सा अर्थ में द्वित्व होकर-सवने सवने । सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(८) सूते सूते । यहां षूङ् प्राणिगर्भविमोचने (अदा०आ०) धातु से 'क्त' प्रत्यय है। पूर्ववत् सप्तमी विभक्ति और वीप्सा अर्थ में द्विवचन है।।
(९) सोमे सोमे। यहां पुत्र अभिषवें' (स्वा०उ०) धातु से 'अर्तिस्तुसुनीभ्यो मन् (उणा० १।१४०) से 'मन्' प्रत्यय है। पूर्ववत् सप्तमी विभक्ति और वीप्सा अर्थ में द्विवचन है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। मूर्धन्यादेशप्रतिषेधः
(५७) सात्पदाद्योः।१११। प०वि०-सात्-पदाद्यो: ६।२।
स०-पदस्यादिरिति पदादि: । साच्च पदादिश्च तौ सात्पदादी, तयो:सात्पदाद्यो: (षष्ठीगर्भित इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-संहितायाम्, स:, मूर्धन्य:, इणः, न इति चानुवर्तते। अन्वयः-संहितायाम् इण: सात्पदाद्यो: सो मूर्धन्यो न।
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