Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
६६२
पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम्
सo - स्तुश्च स्तोमश्च सोमश्च ते - स्तुत्स्तोमसोमा: (इतरेतर
योगद्वन्द्वः) ।
अनु० - संहितायाम्, सः, अपदान्तस्य मूर्धन्यः, इणः, समासे इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-संहितायां समासे इणोऽग्नेः स्तुत्स्तोमसोमा अपदान्तस्य सो
मूर्धन्यः ।
अर्थ:-संहितायां समासे च विषये इणन्ताद् अग्निशब्दात् परेषां स्तुत्स्तोमसोमा इत्येतेषामपदान्तस्य सकारस्य स्थाने, मूर्धन्यादेशो भवति । उदा०- (स्तुत्) अग्निं स्तौतीति अग्निष्टुत् । ( स्तोम : ) अग्नेः स्तोम इति अग्निष्टोमः । (सोमः ) अग्निश्च सोमश्च तौ अग्नीषोमौ ।
आर्यभाषाः अर्थ- ( संहितायाम् ) सन्धि और (समासे) समास विषय में (इणः) इणन्त (अग्ने) अग्नि शब्द से परवर्ती (स्तुत्स्तोमसोमाः ) स्तुत्, स्तोम, सोम इन शब्दों के ( अपदान्तस्य) अपदान्त (सः) सकार के स्थान में (मूर्धन्यः ) मूर्धन्य आदेश होता है।
उदा०- (स्तुत्) अग्निष्टुत् । अग्नि देवता की स्तुति करनेवाला । (स्तोम ) अग्निष्टोमः । यज्ञविशेष । इस में तीन सवन और द्वादश स्तोत्र होते हैं । (सोम) अग्नीषोमौ । अग्नि और सोम देवता, दोनों ।
सिद्धि-(१) अग्निष्टुत्। यहां अग्नि उपपद 'ष्टुञ् स्तुतौ (अदा० उ०) धातु से 'क्विप् च' (३/२/७६ ) से 'क्विप्' प्रत्यय है । क्विप्' का सर्वहारी लोप होता है। 'ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।७०) से 'तुक्' आगम है। इस सूत्र से इणन्त अग्नि शब्द से परवर्ती 'स्तुत्' शब्द के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। 'ष्टुना ष्टुः' (८1३ 1४१) से तकार को टवर्ग टकार आदेश है। 'उपपदमतिङ्' (२ । २ । १९ ) से उपपद समास है। शब्दों का षष्ठी (२121८) से
(२) अग्निष्टोमः । यहां अग्नि और स्तोम षष्ठीतत्पुरुष समास है। सूत्र - कार्य पूर्ववत् है ।
(३) अग्निषोमौ । यहां अग्नि और सोम शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२/२/२९) से द्वन्द्वसमास है। ईदग्ने: सोमवरुणयो:' ( ६ । ३ । २७ ) से ईकारादेश होता है। सूत्र कार्य पूर्ववत् है ।
यहां 'सात्पदाद्यो:' (८ । ३ । १११ ) से पदादिलक्षण प्रतिषेध प्राप्त था, अत: यह मूर्धन्य आदेश विधान किया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org