Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(इ) अग्ना३इ+आशा अग्नाश्याशा। अग्ना३इ+इन्द्रम्= अग्नाइयिन्द्रम्। (उ) पटा३उ+आशा-पटा३वाशा। पटा३उ+उदकम्= पटा३वुदकम्।
'संहितायाम्' इत्यधिकारोऽयम् आ अध्यायपरिसमाप्तेः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (तयोः) उन पूर्वोक्त इकार और उकार के स्थान में (अचि) अच् वर्ण परे होने पर यथासंख्य (यवौ) यकार और वकार आदेश होते हैं।
उदा०-उदाहरण संस्कृत-भाग में लिखे हैं।
आन्नाश्याश आदि उदाहरणों में 'इको यणचि' (६।११७६) से विहित यणादेश के असिद्ध होने से यह अकारादेश का विधान किय गया है। आनाइयिन्द्रम् आदि में 'अक: सवर्णे दीर्घः' (६।१।९७) से प्राप्त दीर्घरूप एकादेश के असिद्ध होने से इस सूत्र से विहित यकारादेश ही होता है। ऐसे ही-पटा३ वाशा, पटा३वुदकम् ।।
‘संहितायाम्' इस पद का अष्टम अध्याय की समाप्ति पर्यन्त अधिकार है। पाणिनि मुनि इससे आगे जो कहेंगे वह संहिता (सन्धि) विषय में जानना चाहिये।
।। इति प्लुतादेशप्रकरणम् ।।
इति पण्डितसुदर्शनदेवाचार्यविरचिते पाणिनीयाष्टाध्यायीप्रवचने
अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः।
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