Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः विशेष: वेत्तेस्तु विदितो निष्ठा विद्यतेर्विन्न इष्यते ।
विन्तेर्विन्नश्च वित्तश्च वित्तो भोगेषु विन्दतेः ।। अर्थ:-विद ज्ञाने' (अ०प०) धातु से निष्ठा में-वित्त:, 'विद सत्तायाम्' (दि०आ०) धातु से-विन्न:, विद विचारणे' (रुधा०आ०) धातु से-विन्न: और वित्त:, 'विद्लु लाभे (1०3०) धातु से भोग और प्रत्यय (प्रसिद्धि) अर्थ में-वित्तः, यह रूप बनता है। यहां 'विद विचारणे (रुधा०आ०) धातु का ग्रहण किया जाता है। नकारादेश-विकल्प:
(१६) न ध्याख्यापृमूर्छिमदाम्।५७। प०वि०- न अव्ययपदम्, ध्या-ख्या-पृ-मूछि-मदाम् ६।३ (पञ्चम्यर्थे)।
स०-ध्याश्च ख्याश्च पृश्च मूञ्छिश्च मद् च ते-ध्याख्यापृमूछिमद:, तेषाम्-ध्याख्यापृमूर्छिमदाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) ।
अनु०-निष्ठात:, न:, धातोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-ध्याख्यापृमूछिमदिभ्यो धातुभ्यो निष्ठातो नो न।
अर्थ:-ध्याख्यापृमूछिमदिभ्यो धातुभ्य: परस्य निष्ठातकारस्य स्थाने नकारादेशो न भवति।
__ उदा०-(ध्या) ध्यात:, ध्यातवान्। (ख्या) ख्यातः, ख्यातवान्। (पृ) पूर्त:, पूर्तवान्। (मूर्छा) मूर्तः, मूर्तवान्। (मद) मत्तः, मत्तवान् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(ध्या०) ध्या, ख्या, पृ, मूर्छि, मद इन (धातुभ्यः) धातुओं से परवर्ती (निष्ठात:) निष्ठा के तकार के स्थान में (न:) नकारादेश (न) नहीं होता है।
उदा०-(ध्या) ध्यात:, ध्यातवान् । उसने चिन्तन किया। (ख्या) ख्यातः, ख्यातवान् । उसने प्रकथन किया। (१) पूर्त:, पूर्तवान् । उसने पालन-पूरण किया। (मूर्छा) मूर्तः, मूर्तवान् । वह मूछित हुआ। (मद) मत्तः, मत्तवान् । वह हर्षित हुआ।
सिद्धि-(१) ध्यात: । यहां 'ध्यै चिन्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से निष्ठा' (३।२।१०२) से क्त' प्रत्यय है। संयोगादेरातो धातोर्यण्वत:' (८।२।४३) से निष्ठा-तकार को नकारादेश प्राप्त है। अत: इस सूत्र से नकारादेश का प्रतिषेध किया गया है। क्तवतु' प्रत्यय में-ध्यातवान् ।
(२) ख्यात: । यहां ‘ख्या प्रकथने' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत्। क्तवतु' प्रत्यय में-ख्यातवान् ।
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