Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् झषन्त दुघ्' धातु से प्रत्यय तच' तकार को धकारादेश होता है। 'झलां जश झशि (८।४।५३) से घकार को गकार जश् आदेश है। तुमुन्' प्रत्यय में-दोग्धुम् । तव्यत्' प्रत्यय में-दोग्धव्यम्।
(४) अदुग्ध । यहां दुह' धातु से लुङ् प्रत्यय है। ले: सिच्' (३।१।४४) से च्लि' के स्थान में सिच्’ आदेश और झलो झलि (८।२।२६) से 'सिच्’ का लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। 'थास्' प्रत्यय में-अदुग्धाः ।
(५) लेढा । यहां लिह ऑस्वादने (अदा०उ०) धातु से पूर्ववत् तृच्’ प्रत्यय है। हो ढः' (८।२।३१) से हकार को ढकारादेश होता है। इस सूत्र से झषन्त लिद्' धातु से परे तृच्’ के तकार को धकारादेश और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४१) से धकार को ढकारादेश और 'ढो ढे लोप:' (८।३।१३) से पूर्ववर्ती ढकार का लोप होता है। तुमुन्' प्रत्यय में-लेढुम् । तव्यत्' प्रत्यय में-लेढव्यम्।
(६) अलीढ । यहां लिह' धातु से लुङ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् सिच् का लोप, हकार को ढकार, तकार को धकार, धकार को ढकार, पूर्ववर्ती ढकार का लोप और द्रलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण:' (६।३।१११) से दीर्घ (ई) होता है। 'थास्' प्रत्यय में-अलीढा: । ऐसे ही बुध अवगमने (दि०आ०) धातु से-बोद्धा, बोद्धम्, बोद्धव्यम्। 'लुङ्' लकार मेंअबुद्ध (त)। अबुद्धाः (थास्)। क-आदेश:
(२४) षढोः कः सि।४१। प०वि०-षढो: ६।२ क: १।१ सि ७।१। स०-षश्च ढश्च तौ षढौ, तयो:-षढो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अन्वय:-षढो: सि कः। अर्थ:-षकारढकारयोः स्थाने सकारे परत: ककारादेशो भवति ।
उदा०-(पिष्) षकार:-पेक्ष्यति। अपेक्ष्यत्। पिपिक्षति। (लिह्) ढकार:-लेक्ष्यति । अलेक्ष्यत् । लिलिक्षति।
आर्यभाषा: अर्थ-(षढो:) षकार और ढकार के स्थान में (सि) सकार परे होने पर (क:) ककारादेश होता है।
उदा०-(पिष्) षकार-पेक्ष्यति। वह पीसेगा। अपेक्ष्यत् । यदि वह पीसता। पिपिक्षति। वह पीसना चाहता है। (लिह) ढकार-लेक्ष्यति । वह चाटेगा। अलेक्ष्यत् । यदि वह चाटता। लिलिक्षति । वह चाटना चाहता है।
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