Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् निपातनम्
(6) निर्वाणोऽवाते।५०। प०वि०-निर्वाण: ११ अवाते ७।१। स०-न वात इति अवात:, तस्मिन्-अवाते (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-निष्ठात:, धातोरिति चानुवर्तते । अन्वय:-अवाते निर्वाणो निपातनम्। अर्थ:-अवाते वाताधिकरणवर्जितेऽर्थे निर्वाण इति पदं निपात्यते।
अत्र निस्-पूर्वाद् वाति-धातो: परस्य निष्ठातकारस्य नकारादेशो निपात्यते, न चेद् वात्यर्थो वाताधिकरणो भवति ।
उदा०-(वा) निर्वाणोऽग्निः । निर्वाण: प्रदीपः । एष निर्वाणो भिक्षुः । अवाते इति किम् ? निर्वातो वात: । वातो निरुद्ध इत्यर्थः । . आर्यभाषा: अर्थ-(अवाते) वायु-अधिकरण से भिन्न अर्थ में (निर्वाण:) निर्वाण यह पद निपातित है।
यहां निस्-उपसर्गपूर्वक वा गतिगन्धनयोः' (अदा०प०) धातु से परवर्ती निष्ठा के तकार को नकारादेश निपतित है, यदि वह 'वा' धातु का अधिकरण-आधार वात (वायु) न हो।
उदा०--(वा) निर्वाणोऽग्निः। अग्नि उपशान्त होगया। निर्वाण: प्रदीपः। दीपक बुझ गया। एष निर्वाणो भिक्षुः । यह साधु राग आदि से उपरत है। 'अवाते' का कथन इसलिये है कि यहां नकारादेश न हो-निर्वातो वातः । वायु बन्द होगया है।
_ सिद्धि-निर्वाणः । यह निस्-उपसर्गपूर्वक वा गतिगन्धनयो:' (अदा०प०) धातु से निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से वात से भिन्न अधिकरण में 'वा' धातु से परवर्ती निष्ठा के तकार को नकारादेश निपातित है। 'अट्कुप्वाङ्' (८।४।२) से णत्व होता है। क-आदेश:
(१०) शुषः कः।५१। प०वि०-शुष: ५।१ क: १।१। अनु०-निष्ठात:, धातोरिति चानुवर्तते । अन्वय:-शुषो धातोर्निष्ठात: कः ।
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