Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
५३१ सिद्धि-(१) पेक्ष्यति। यहां 'पिष्ल पेषणे (रुधा०प०) धातु से लट् शेषे च (३।३।१३) से लुट्' प्रत्यय है। स्यतासी ललुटो:' (३।१।३३) से स्य' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र के पिष' के षकार को सकारादि स्य' प्रत्यय परे होने पर ककारादेश होता है। आदेशप्रत्यययोः' (८।३।५९) से षत्व होता है।
(२) अपेक्ष्यत् । यहां पिष्' धातु से लिनिमित्ते लुङ् क्रियातिपत्तौ (३।३।१३९) से लुङ्' प्रत्यय और पूर्ववत् स्य' विकरण-प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) पिपिक्षति । यहां पिष्' धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तृकादिच्छायां वा' (३।१।७) से इच्छा-अर्थ में सन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) लेक्ष्यति । यहां लिह आस्वादने (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् लुट्' और 'स्य' विकरण-प्रत्यय है। हो ढः' (८।२।३१) से हकार को ढकारादेश होता है। इस सूत्र से सकारादि स्य' प्रत्यय परे होने पर लिद' के ढकार को ककारादेश होता है। लङ्' लकार में-अलेक्ष्यत् । सन्' प्रत्यय में-लिलिक्षति।
(निष्ठातकारादेशप्रकरणम्) न-आदेश:
(१) रदाभ्यां निष्ठातो नः पूर्वस्य च दः ।४२।
प०वि०-रदाभ्याम् ५।२ निष्ठात:६।१ न: १।१ पूर्वस्य ६।१ च अव्ययपदम्, द: ६।१।
स०-रश्च दश्च तौ रदौ, ताभ्याम्-रदाभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। निष्ठायास्तकार इति निष्ठात्, तस्य-निष्ठात: (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अन्वय:-रदाभ्यां निष्ठातो न:, पूर्वस्य च दो नः।
अर्थ:-रेफदकाराभ्यां परस्य निष्ठा-तकारस्य स्थाने नकारादेशो भवति, पूर्वस्य च दकारस्य स्थाने नकारादेशो भवति।
उदा०-(रेफात्) आस्तीर्णम् । विस्तीर्णम् । विशीर्णम्। निगीर्णम् । अवगूर्णम्। (दकारात्) भिन्न:, भिन्नवान्। छिन्न:, छिन्नवान्।
आर्यभाषा: अर्थ-(रदाभ्याम्) रेफ और दकार से परवर्ती (निष्ठात:) निष्ठा के तकार के स्थान में (न:) नकारादेश होता है (च) और (पूर्वस्य) उससे पूर्ववर्ती (द:) दकार के स्थान में भी (न:) नकारादेश होता है।
उदा०-रिफ) आस्तीर्णम् । बिछाना । विस्तीर्णम् । फैलाना। विशीर्णम् । बिखरना। निगीर्णम् । निगलना। अवगूर्णम् । निन्दा करना। (दकारात) भिन्न:, भिन्नवान् । उसने फाड़ा। छिन्न:, छिन्नवान् । उसने काटा।
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