Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
अष्टमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
५५ के स्थान में सिच्' आदेश और यह 'लिसिचावात्मनेपदेषु' (१।२।११) से किद्वत् होने से विडति च' (१1१५) से अङ्ग को गुण का प्रतिषेध होता है। धि च' (८।२।२५) से 'सिच्' के सकार का लोप होता है। इस सूत्र से 'ध्वम्' परे होने पर बुध्' के (ब) के स्थान में भष् (भ्) आदेश होता है।
(४) पर्णघुट् । यहां पर्ण-उपपद गुह संवरणे' (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् क्विप्' प्रत्यय और उसका सर्वहारी लोप होता है। इस सूत्र से पदान्त में विद्यमान झपन्त गुद के बश् (ग) को भए (घ) आदेश होता है। हो ढ:' (८।२।३१) से हकार को ढकार, ढकार को जश्त्व डकार और डकार को चर्व टकार होता है।
(५) निघोक्ष्यते। यहां नि-उपसर्गपूर्वक 'गुह्' धातु से पूर्ववत् लुट्' प्रत्यय और स्य विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से सकार परे होने पर झषन्त गुद' के बश् (ग) को भष् (घ) आदेश होता है। हो ढः' (८।२।३१) से हकार को ढकार, षढो: क: सिं' (८।२।४१) से ढकार को ककार और 'आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से षत्व होता है।
(६) न्यघूद्ध्वम् । यहां नि-उपसर्गपूर्वक गुह्' धातु से 'लुङ्' प्रत्यय और लकार के स्थान में 'ध्वम्' आदेश है। धि च (८/२।२५) से सिच' के सकार का लोप होता है। इस सूत्र से 'ध्वम्' परे होने पर झपन्त गुद' के बश् (ग) को भष् (घ) आदेश होता है। हो ढः' (८।२।३१) से गुह' के हकार को ढकार और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४१) से 'ध्वम्' के धकार को ढकार, 'ढो ढे लोप:' (८।३।१३) से पूर्ववर्ती ढकार का लोप और द्रलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः' (६।३।१११) से अण् (उ) को दीर्घ होता है।
(७) गोधुक् । यहां गो-उपपद दुह प्रपूरणे (अदाउ०) धातु से पूर्ववत् क्विप्' प्रत्यय और इसका सर्वहारी लोप होता है। दादेर्धातोर्ध:' (८।२।३२) से 'दुह' के हकार को घकारादेश होता है। इस सूत्र से झपन्त दुघ्' धातु को पदान्त में बश् (द) के स्थान में भष् (ध्) आदेश होता है। घकार को जश्त्व गकार और गकार को चर्व ककार होता है।
(८) धोक्ष्यते। यहां 'दुह' धातु से पूर्ववत् लट् और स्य विकरण-प्रत्यय है। 'दादेर्धातोर्घः' (८।२।३२) से हकार को घकारादेश और इस सूत्र से झपन्त दुघ्' को सकार परे होने पर बश् (द्) के स्थान में भष् (ध्) आदेश होता है।
(९) अधुरध्वम् । यहां 'दुह' धातु से लुङ्' प्रत्यय, च्लि' के स्थान में 'सिच्' आदेश और धि च (८।२।२५) से सिच के सकार का लोप होता है। पूर्ववत् दुह' के हकार को घकारादेश होकर इस सूत्र से झषन्त दुघ्' को 'ध्वम्' परे होने पर बश् (द) को भष् (ध्) आदेश होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org