Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (समर्थाभ्याम्) समानार्थक (एकान्याभ्याम्) एक और अन्य शब्द के (योगे) योग में (प्रथमा) प्रथमा (तिङ्) तिङ्-विभक्ति (विभाषा) विकल्प से (सर्वानुदात्ता) सर्वानुदात्त (न) नहीं होती है।
उदा०-(एकयोग) प्रजामेका जिन्वत्यूर्जमेको राष्ट्रमेको रक्षति देवयूनाम् (शौ०सं० ८।९।१३) जिन्वति। देवों के इच्छुक जनों की एकशक्ति प्रजा को और बल-प्राण को तृप्त करती है और एक राष्ट्र की रक्षा करती है। (अन्ययोग) तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्त्यननन्नन्यो अभिर्चाकशीति (ऋ० १।१६४।२०) अत्ति । ईश्वर और जीव इन दोनों में से एक इस जगवृक्ष के स्वादु फल को खाता है और एक स्वादु फल न खाता हुआ इसे देखता रहता है।
सिद्धि-प्रजामेका जिन्वति०। यहां छन्द विषय में ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, एका' पद से परवर्ती तथा इसके योग में प्रथमा जिन्वति' तिङन्त विभक्ति को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में सर्वानुदात्त होता है-जिन्वति । ऐसे ही अन्य शब्द के में-तयोरन्यः पिप्पलं स्वात्ति। विकल्प-पक्ष में सर्वानुदात्त होता है-अत्ति।
एक और अन्य शब्द व्यवस्था अर्थ में समानार्थक हैं; अन्य अर्थ में नहीं। सर्वानुदात्तविकल्पः
(४६) यवृत्तान्नित्यम्।६६ । प०वि०-यद्वृत्तात् ५।१ नित्यम् ११ । स०-यदो वृत्तमिति यद्वृत्तम्, तस्मात्-यवृत्तात् (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, नेति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ यद्वृत्तात् पदात् तिङ् पदं नित्यं सर्वानुदात्तं न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं यद्वृत्तात् पदात् परं तिङन्तं पदं नित्यं सर्वानुदात्तं न भवति।
“यदो वृत्तमिति यवृत्तम् । यत्र पदे यच्छब्दो वर्तते तत्सर्वं यद्वृत्तम् । इह वृत्तग्रहणेन तद्विभक्त्यन्तं प्रतीयात्, डतरडतमौ च प्रत्ययौ इत्येतद् नाश्रीयते” (काशिका)।
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