Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
१८७ आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयो:) अगों के स्थान में (द्वितीयायाम्) द्वितीया (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (च) भी (आ:) आकार आदेश होता है।
उदा०-(युष्मद्) त्वाम् । तुझ को। युवाम् । तुम दोनों को। युष्मान् । तुम सब को। माम् । मुझ को। आवाम् । हम दोनों को। अस्मान् । हम सब को।
सिद्धि-(१) त्वाम् । युष्मद्+अम् । युष्म आ+अम्। त्व अ आ+अम् । त्व आ+अम्। त्वा+अम् । त्वाम्।
यहां 'युष्मद्' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से द्वितीया विभक्ति का एकवचन 'अम्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस द्वितीया विभक्ति के परे होने पर युष्मद्' के अन्त्य अल् (द) को आकार आदेश होता है। त्वमावेकवचने (७।२।९७) से युष्मद्' के मपर्यन्त के स्थान में त्व' आदेश होता है। अतो गणे (६।१।९६) से पूर्वरूप एकादेश (अ+अ-अ) और 'अक: सवर्णे दीर्घः' (६।१।९९) से दीर्घरूप एकादेश (अ+आ आ) होता है। डेप्रथमयोरम् (७/१२८) से 'अम्' के स्थान में 'अम्' आदेश और 'अमि पूर्व:' (६।१ ।१०५) से पूर्वसवर्ण एकादेश होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-माम्।
(२) युवाम् । यहां युष्मद्’ शब्द से स्वौजस्०' (४।१।२) से द्वितीया विभक्ति का द्विवचन 'औ' प्रत्यय है। 'युवावौ द्विवचने (७।२।९२) से 'युष्मद' शब्द के मपर्यन्त के स्थान में युव्' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-आवाम्।
(३) युष्मान् । युष्मद्+शस् । युष्मा+अस् । युष्मान्स् । युष्मान् । युष्मान्।
यहां युष्मद्' शब्द से स्वौजस्० (४।१।२) से द्वितीया विभक्ति का बहुवचन शस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस द्वितीया विभक्ति के परे होने पर आकार आदेश होता है। शसो न' (७।१।२९) से शस्' के अकार को नकार आदेश होकर संयोगान्तस्य लोपः' (८।२।२३) से शस्' के सकार का लोप होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-अस्मान्। आकार-आदेश:
(१०) प्रथमायाश्च द्विवचने भाषायाम्।८८।
प०वि०- प्रथमाया: ६।३ च अव्ययपदम्, द्विवचने ७१ भाषायाम् ७।१।
अनु०-अङ्गस्य, आ:, युष्मदस्मदोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-भाषायां युष्मदस्मदोरङ्गयो: प्रथमायाश्च द्विवचने आ:।
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