Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-वचोऽङ्गस्याऽङि उम्। अर्थ:-वचोऽङ्गस्याऽडि प्रत्यये परत उमागमो भवति । उदा०-अवोचत्, अवोचताम्, अवोचन्।
आर्यभाषाअर्थ-(वच:) वच् इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (अडि) अङ् प्रत्यय परे होने पर (उम्) उम् आगम होता है।
उदा०-अवोचत् । उसने कहा। अवोचताम् । उन दोनों ने कहा। अवोचन् । उन सब ने कहा।
सिद्धि-अवोचत । यहां वच परिभाषणे (अदा०प०) धातु से लुङ् (३।२।११०) से 'लुङ' प्रत्यय है। 'अस्यतिवक्तिख्यातिभ्योऽङ्' (३।१।५२) से चिल' के स्थान में 'अड्' आदेश है। इस सूत्र से वच्' धातु को 'अङ्' प्रत्यय परे होने पर उम्' आगम होता है। यह आगम मित् होने से मिदचोऽन्त्यात्परः' (१।१।४७) के नियम से वच्' के अन्त्य अच् से परे किया जाता है। अ+व उम् च+अ+त् । अ+व उच्+अ+त् । अवोचत् । 'आद्गुणः' (६।१।८७) से गुणरूप एकादेश (ओ) होता है। ऐसे ही तस् (ताम्) प्रत्यय में-अवोचताम् । झि-प्रत्यय में-अवोचन् ।
{आदेशप्रकरणम्} गुणादेशः
(१) शीङः सार्वधातुके गुणः ।२१। प०वि०-शीङ: ६।१ सार्वधातुके ७।१ गुण: १।१। अनु०-अङ्गस्य इत्यनुवर्तते। अन्वय:-शीङोऽङ्गस्य सार्वधातुके गुणः।। अर्थ:-शीङोऽङ्गस्य सार्वधातुके प्रत्यये परतो गुणो भवति । उदा०-स शेते, तौ शयाते, ते शेरते।
आर्यभाषा: अर्थ-(शीङ:) शीङ् इस (अङ्गस्य) अङ् को (सार्वधातुके) सार्वधातुक-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (गुण:) गुण होता है।
उदा०-स शेते । वह सोता है। तौ शयाते। वे दोनों सोते हैं। ते शेरते। वे सब सोते हैं।
सिद्धि-शेते । यहां 'शीङ् स्वप्ने (अदा०आ०) धातु से वर्तमाने लट् (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। 'तिप्तझि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'त' आदेश है। कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय और इसका 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:'
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