Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
३६३
सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(अप:) अप् इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (भि) भकारादि प्रत्यय परे होने पर (त:) तकारादेश होता है।
उदा०-अद्भिः । जल के द्वारा। अद्भ्यः । जल के लिये/से। सिद्धि-अद्भिः । अप्+भिस् । अत्+भिस् । अद्+भिस् । अद्भिः ।
यहां 'अप्' शब्द से स्वौजसः' (४।१।२) से भिस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'अप्' के अन्त्य पकार को भकारादि 'भिस्' प्रत्यय परे होने पर तकारादेश होता है। झलां जशोऽन्ते' (८।२।३९) से तकार को जश् दकारादेश होता है। ऐसे ही 'भ्यस्' प्रत्यय में-अद्भ्यः । त-आदेशः
(२६) सः स्यार्धधातुके।४६। प०वि०-स: ६ १ सि ७।१ आर्धधातुके ७१ । अनु०-अङ्गस्य, त इति चानुवर्तते। अन्वय:-सोऽङ्गस्य सि आर्धधातुके तः।
अर्थ:-सकारान्तस्याऽङ्गस्य सकारादावाऽऽर्धधातुके प्रत्यये परतस्तकारादेशो भवति।
उदा०-स वत्स्यति । अवत्स्यत् । विवत्सति । स जिघत्सति ।
आर्यभाषा: अर्थ-(स:) सकारान्त (अङ्गस्य) अङ्ग को (सि) सकारादि (आर्धधातुके) आर्धधातुक-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (त:) तकारादेश होता है।
उदा०-स वत्स्यति। वह निवास करेगा। अवत्स्यत् । यदि वह निवास करता। विवत्सति । वह निवास करना चाहता है। स जिघत्सति । वह खाना चाहता है।
सिद्धि-(१) वत्स्यति । यहां 'वस निवासे' (भ्वा०प०) धातु से लूट शेषे च' (३।३।१३) से लुट्' प्रत्यय है। 'स्यतासी ललुटो:' (३।११३३) से 'स्य' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से वस्' धातु के सकार को सकारादि आर्धधातुक स्य' प्रत्यय परे होने पर तकारादेश होता है। ऐसे ही लुङ् लकार में-अवत्स्यत्।।
(२) विवत्सति। यहां पूर्वोक्त वस्' धातु से 'धातो: कर्मण: समानकर्तृकादिच्छायां वा' (३।११७) से इच्छा-अर्थ में 'सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'वस्' के सकार को सकारादि, आर्धधातुक सन्' प्रत्यय परे होने पर तकारादेश होता है। 'सन्यडो:' (६।१।९) से धातु को द्वित्व और 'सन्यत:' (७।४।७९) से अभ्यास को इकारादेश होता है।
(३) जिघत्सति । यहां 'अद भक्षणे' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। लुङ्सनोर्घस्तृ' (२।४।३७) से घस्' के स्थान में घस्तृ' आदेश होता है। इस सूत्र से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org