Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स्वरितः' (८।४।६६) से स्वरित होता है। स्वरितात् संहितायामनुदात्तानाम् (१।२।३९) से परवर्ती अनुदात्त को एकश्रुति स्वर होता है। ऐसे ही शेष उदाहरणों में स्वराड्कन करें।
यद् यदार्थे च हेतौ च विचारे यदि चेच्चणः । हन्त हर्षेऽनुकम्पायां वाक्यारम्भविषादयोः ।। कच्चित्प्रश्ने नेन्निषेधे प्रशंसायां कुवित्स्मृतम् ।
यत्राधारे निपातत्वं यदादीनां विशेषणम् ।। (पदमञ्जरी) सर्वानुदात्तप्रतिषेधः
(१४) नह प्रत्यारम्भे।३१। प०वि०-नह अव्ययपदम्, प्रत्यारम्भे ७।१।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातै:, युक्तमिति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ पदात् प्रत्यारम्भे नह-निपातेन युक्तं तिङ् पदं सर्वमनुदात्तं न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं प्रत्यारम्भेऽर्थे नह इत्यनेन निपातेन युक्तं तिङन्तं पदं सर्वमनुदात्तं न भवति।
उदा०-त्वं नह भोक्ष्यसे । त्वं नह अध्येष्यसे।
“चोदितस्यावधीरणे उपलिप्सया प्रतिषेधयुक्त: प्रत्यारम्भ: क्रियते" (काशिका)। प्रत्यारम्भ:=पुनरारम्भ इत्यर्थः ।
आर्यभाषा: अर्थ- (अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (प्रत्यारम्भे) पुनरारम्भ-अर्थ में (नह) नह इस (निपातेन) निपात-संज्ञक शब्द से (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
उदा०-त्वं नह भोक्ष्यसे । क्या तू भोजन नहीं करेगा ? त्वं नह अध्येष्यसे । क्या तू अध्ययन नहीं करेगा?
कोई व्यक्ति किसी को भोजन आदि क्रिया के लिये प्रेरित करता है किन्तु वह उसकी उपेक्षा कर देता है तब उसे भोजन आदि कराने की इच्छा से जो पुन: निषेधात्मक कथन किया जाता है, वह प्रत्यारम्भ' कहाता है।
सिद्धि-नह भोक्ष्यसे । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, प्रत्यारम्भ वाची 'नह' पद से परवर्ती तथा इससे संयुक्त 'भोक्ष्यसे' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का
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