Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सo-प्रातिलोम्यम्=प्रातिकूल्यम् (प्रतिकूलता)। न प्रातिलोम्यमिति अप्रातिलोम्यम्, तस्मिन्-अप्रातिलोम्ये (नञ्तत्पुरुष:)। अप्रातिलोम्यम्आनुकूलमित्यर्थः।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातै:, युक्तमिति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ पदात् प्रातिलोम्ये सत्यं निपातेन युक्तं तिङ् पदं सर्वमनुदात्तं न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परमप्रातिलोम्ये गम्यमानेऽङ्गत्यनेन निपातेन युक्तं तिङन्तं पदं सर्वमनुदात्तं न भवति।
उदा०-अङ्ग कुरु। अङ्ग पर्च। अङ्ग पठे।
आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (अप्रातिलोम्ये) अनुकूलता अर्थ की प्रतीति में (अग) अग इस (निपातेन) निपात-संज्ञक शब्द से (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
__ उदा०-अङ्ग कुरु । अच्छा बेटा कर। अङ्ग पर्च। अच्छा बेटा पका। अङ्ग पठे। अच्छा बेटा पढ़।
सिद्धि-अङ्ग कुरु। यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, अङ्ग पद से परवर्ती तथा अप्रातिलोम्य अर्थ की प्रतीति में 'अङ्ग' इस निपात से संयुक्त तिडन्त 'कुरु' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त (निघात) का प्रतिषेध होता है। अत: 'कुरु' पद पूर्ववत् प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त होता है। ऐसे ही-अङ्ग पच। 'पच' पद में अनुदात्तौ सपपितौ' (३।१।४) से अनुदात्त है और इसे उदात्तादनुदात्तस्य स्वरितः' (८।४।६६) से स्वरित होता है। ऐसे ही-अङ्ग पठे।
'अम' शब्द चादिगण में पठित होने से निपात-संज्ञक है। यह यहां आज्ञार्थक होने से, अप्रातिलोम्य-अनुकूलता अर्थ की अभिव्यक्ति स्पष्ट है। सर्वानुदात्तप्रतिषेधः
(१७) हि च।३४। प०वि०-हि अव्ययपदम्, च अव्ययपदम्।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातैः, युक्तम्, अप्रातिलोम्ये इति चानुवर्तते।
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