Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
उदाहरणम्
निपात: (१) यत्
स यत् क॒रोति॑'।
स यत् प॒चति॑ ।
(२) यदि
स यदि क॒रोति॑ ।
स यदि प॒चति॑ ।
(३) हन्त
स हन्त क॒रोति॑ ।
स हन्त प॒चति॑ ।
(४) कुवित् स कुवित् क॒रोति॑ ।
स कु॒वित् प॒चति॑ ।
(५) नेत्
जि॒ह्माय॒न्त्यो रके
(६) चेत्
अयं च म॒रि॒ष्यति॑ ।
(७) चण् (८) कच्चित् | स कच्चिद् भुङ्क्ते ।
स कच्चिदधीते ।
(९) यत्र
तेम (खि० १० | १०६
)
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स चेद् भुङ्क्ते । स चेदधीते ।
स यत्र भुङ्क्ते । स यत्राधीते ।
भाषार्थ:
वह जब करता है 1
वह जब पकाता है।
वह अगर करता है ।
वह अगर पकाता है।
वह सहर्ष करता है।
वह सहर्ष पकाता है 1
वह अच्छा करता है ।
वह अच्छा पकाता है I
हम कुटिल कर्म करती हुई
|
कभी नरक में न गिर जायें ।
वह यदि खाता है ।
वह यदि पढ़ता है ।
यह यदि मरेगा ।
क्या वह खाता है ।
क्या वह पढ़ता है } वह जहां खाता है ।
वह जहां पढ़ता है।
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आर्यभाषा: अर्थ - (अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (निपातैः ) निपात-संज्ञक (यद्० ) यत्, यदि, हन्त, कुवित्, नेत्, चेत्, चण्. कच्चित्, यत्र से संयुक्त ( तिङ् ) तिङन्त (पदम् ) पद (सर्वानुदात्तम् ) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
उदा० - उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है।
सिद्धि-स यत् क॒रोति॑ । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, यत् पद से परवर्ती तथा इस निपात से युक्त तिङन्त 'करोति' पद इस सूत्र से सर्वानुदात्त निघात नहीं होता है। अतः 'तनादिकृञभ्य उ:' ( ३ | १/७९ ) से विहित 'उ' विकरण-प्रत्यय 'आद्युदात्तश्च' ( ३ 1१1३) से उदात्त होता है। ऐसे ही स यत् प॒चति । यहां 'शम्' विकरण- प्रत्यय 'अनुदात्तौ सुप्पितौँ (३ 1१1४ ) से अनुदात्त होकर 'उदात्तादनुदात्तस्य
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