Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् घस्' के सकार को सकारादि, आर्धधातुक सन्' प्रत्यय परे होने पर तकारादेश होता है। कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास-घकार को जकार और सन्यत:' (७।४।७९) से इकारादेश होता है।
सकारलोपः
(३०) तासस्त्योर्लोपः।५०। प०वि०-तास्-अस्त्यो : ६।२ लोप: १।१। स०-तास् च अस्तिश्च तौ तासस्ती, तयो:-तासस्त्योः (इतरेतर
योगद्वन्द्वः)।
अनु०-अङ्गस्य, स:, सीति चानुवर्तते। अन्वय:-तासस्त्योरङ्गयो: स: सि लोप: ।
अर्थ:-तासेरस्तेश्चाङ्गस्य सकारस्य सकारादौ प्रत्यये परतो लोपो भवति।
उदा०-(तास) त्वं कर्तासि, कर्तासे। (अस्ति:) त्वम् असि । त्वं सुखं व्यतिसे।
आर्यभाषा: अर्थ-(तासस्त्योः) तास् और अस्ति अस् इस (अङ्गस्य) अग के (स:) सकार का (सि) सकारादि प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप होता है।
उदा०-(तास्) त्वं कर्तासि, कर्तासे । तू कल करेगा। (अस्ति) त्वम् असि । तू है। त्वं सुखं व्यतिसे । तू परस्पर सुखपूर्वक रहता है।
सिद्धि-(१) कर्तासि । यहां डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से 'अनद्यतने लुट्' (३।३।१५) से लुट्' प्रत्यय है। स्यतासी ललुटो:' (३।१।३३) से तासि' विकरण-प्रत्यय होता है। तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में सिप' आदेश है। इस सूत्र से 'तास्' के सकार का सकारादि स्य' प्रत्यय परे होने पर लोप होता है। ऐसे ही थास् (से) प्रत्यय में-कर्तासे।
(२) असि । यहां 'अस भुवि (अदा०प०) धातु से वर्तमाने लट् (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। तिप्तस्झि०' (३।३।७८) से लकार के स्थान में सिप' आदेश है। इस सूत्र से 'अस्' धातु के सकार का सकारादि 'सिप' प्रत्यय परे होने पर लोप होता है। अस्+सि । अ०+सि । असि। 'अदिप्रभृतिभ्य: शप:' (२।४।७२) से 'शप' विकरण-प्रत्यय का लुक् हो जाता है।
(२) व्यतिसे। यहां वि+अतिपूर्वक 'अस्' धातु से पूर्ववत् 'लट्' प्रत्यय है। तिप्तसझि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'थास' आदेश और 'थास: से
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