Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-ऋचि विषये कव्यध्वरपृतनानामऽङ्गानां क्यचि प्रत्यये परतो लोपो भवति।
उदा०-(कवि:) स पूर्वया निविदा कव्यता (ऋ० १९६।२)। (अध्वर:) शंसावाध्वर्यो प्रति मे गृणीहि (ऋ० ३।५३।३)। (पृतना) वज्रेण शत्रुमवधी: पृतन्युम् (ऋ० १।३३।१२)।
__ आर्यभाषा: अर्थ-(ऋचि) ऋग्वेद विषय में (कव्यध्वरपृतनानाम्) कवि, अध्वर, पृतना इन (अङ्गानाम्) अगों का (क्यचि) क्यच् प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप होता है।
उदा०-(कवि) स पूर्वया निविदा कव्यता (ऋ० ११९६२)। कवि की इच्छाकरनेवाले के द्वारा। (अध्वर) शंसावाध्वर्यो प्रति मे गृणीहि (ऋ० ३ १५३ ॥३)। अध्वर्यो ! हे हिंसारहित यज्ञ की इच्छा करनेवाले ! (पतना) वज्रेण शत्रुमवधी: प्रतन्युम् (ऋ० १।३३।१२)। पृतन्युम्=अपनी सेना के इच्छुक शत्रु को।
सिद्धि-(१) कव्यता । यहां 'कवि' शब्द से सुप आत्मन: क्यच् (३।१1८) से क्यच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'कवि' शब्द के अन्त्य इकार का लोप होता है। तत्पश्चात् कव्य' धातु से लट: शतृशानचा०' (३।२।१२४) से लट्' के स्थान में 'शतृ' आदेश है। कव्यन्, कव्यन्तौ, कव्यन्त:, कव्यता (३।१)।।
(२) अध्वर्युः। यहां 'अध्वर' शब्द से पूर्ववत् क्यच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'अध्वर' शब्द के अन्त्य अकार का लोप होता है। तत्पश्चात् ‘अध्वर्य' धातु से क्याच्छन्दसि' (३।२।१७०) से 'उ' प्रत्यय है। अतो लोप:' (६।४।४८) से अकार का लोप होता है। सम्बुद्धि में-हे अध्वर्यो !
(३) पृतन्युम् । यहां पृतना' शब्द से पूर्ववत् क्यच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पृतना' शब्द के अन्त्य आकार का लोप होता है। तत्पश्चात् पृतन्य' धातु से क्याच्छन्दसि' (३।२।१७०) से 'उ' प्रत्यय है। द्वितीया एकवचन में-पृतन्युम् । इत्-आदेश:
(२०) द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति।४०। प०वि०-द्यति-स्यति-मा-स्थाम् ६ ।३ इत् ११ ति ७ १ किति ७।१।
स०-द्यतिश्च स्यतिश्च माश्च स्थाश्च ते द्यतिस्यतिमास्था:, तेषाम्द्यतिस्यतिमास्थाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। क् इद् यस्य स कित्, तस्मिन्किति (बहुव्रीहिः)।
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