Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-भृशायते । सुखायते । दुःखायते । चीयते । चेचीयते । स्तूयते। तोष्ट्रयते। चीयात् । स्तूयात्।
आर्यभाषा: अर्थ-अजन्त (अङ्गस्य) अङ्ग को (अकृत्सार्वधातुकयो:) कृत् और सार्वधातुक-संज्ञक प्रत्यय से भिन्न (यि) यकारादि (क्ङिति) कित् और डित् प्रत्यय परे होने पर (दीर्घ:) दीर्घ होता है।
__ उदा०-भृशायते । जो सब नहीं वह सब होता है। सुखायते । वह सुख अनुभव करता है। दुःखायते। वह दु:ख अनुभव करता है। चीयते। उसके द्वारा चयन किया जाता है। चेचीयते । वह पुन:-पुन:/अधिक चयन करता है। स्तूयते । उसके द्वारा स्तुति की जाती है। तोष्ट्रयते । वह पुन:-पुन:/अधिक स्तुति करता है। चीयात् । वह चयन करे (आशीर्वाद)। स्तूयात् । वह स्तुति करे (आशीर्वाद)।
सिद्धि-(१) भृशायते । यहां 'भृश' शब्द से 'भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च हल:' (३।१।१२) से 'क्यङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'भृश' शब्द को कृत् और सार्वधातुक से भिन्न, यकारादि, डित् क्यङ्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ (आ) होता है।
(२) सुखायते। यहां सुख' शब्द से सुखादिभ्यः कर्तृवेदनायाम् (३।१।१८) से क्यङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'सुख' शब्द को पूर्वोक्त क्यङ्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ (आ) होता है। ऐसे ही दुःख' शब्द से-दु:खायते।
(३) चीयते । यहां चिञ् चयने (स्वा०3०) धातु से कर्म-अर्थ में लट्' प्रत्यय है। सार्वधातुके यक् (३।११६७) से यक्' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से चि' धातु को कित् यक्’ प्रत्यय परे होने पर दीर्घ (ई) होता है। ऐसे ही 'टु स्तुतौ' (अदा०३०) धातु से-स्तूयते।
(४) चेचीयते। यहां चिञ् चयने (स्वा०उ०) धातु से 'धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ् (३।१।२२) से यङ्' प्रत्यय है। सन्यडो:' (६।१।९) से 'चि' धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से चि' धातु को पूर्ववत् डित् यङ्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ (ई) होता है। गुणो यङ्लुको:' (७।४।८२) से अभ्यास को गुण होता है। ऐसे ही 'ष्टुञ स्तुतौ (अदा०उ०) धातु से-तोष्ट्रयते।
(५) चीयात् । यहां पूर्वोक्त 'चि' धातु से 'आशिषि लिङ्लोटौं' (३।३।१७३) से आशीर्वाद अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है। यह लिङाशिषि' (३।४।११६) से आर्धधातुक है। यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३।४।१०३) से ङित् ‘यासुट्' आगम है। इस सूत्र से चि' धातु को ङित् ‘यासुट्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ (ई) होता है। ऐसे ही 'टुझ स्तुतौ' (अदा०उ०) धातु से-स्तूयात् ।
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