Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ... उदा०-दिविका) दाविकमुदकम् । देविका नदी में होनेवाला जल । दाविकाकूला: शालय: । देविका नदी के तट पर होनेवाले चावल। पूर्वदाविकः । पूर्वदेविका नामक प्राग्देशीय ग्राम है उसमें होनेवाला। (शिंशपा) शांशपश्चमस: । शिशपा (शीशम) की लकड़ी का बना हुआ चमस। (दित्यवाट्) दात्यौहः । कृष्ण काक-कौआ। (दीर्घसत्र) दीर्घसत्रम् । दीर्घसत्र नामक सोमयाग में होनेवाला। (श्रेयस्) श्रायसम् । श्रेय मार्ग में होनेवाले आनन्द।
सिद्धि-(१) दाविकम् । यहां देविका' शब्द से तत्र भव:' (४।३।५२) से भव-अर्थ में प्रागवहतीय 'अण' प्रत्यय है। इस सूत्र से दविका' शब्द के आदिम अच् एकार को आकार आदेश होता है। ऐसे ही-दाविकाकूला: शालय:, पूर्वदाविकः । प्राचां ग्रामनगराणाम्' (७।३।१४) से उत्तरपद को वृद्धि प्राप्त थी, यह सूत्र उसका अपवाद है।
(२) शांशपः । यहां शिंशपा' शब्द से 'पलाशादिभ्यो वा' (४।३।१३९) से विकार-अर्थ में 'अञ्' प्रत्यय है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-पूर्वशांशप: । 'प्राचां ग्रामनगराणाम् (७।३।१४) से उत्तरपद को वृद्धि प्राप्त थी, यह सूत्र उसका अपवाद है।
(३) दित्यौहः । यहां दित्यवाट्' शब्द से तस्येदम् (४।३।१२०) से यथाविहित प्राग्दीव्यतीय 'अण' प्रत्यय है। 'वाह ऊ' (६।४।१३२) से ऊल्-रूप सम्प्रसारण, 'सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०६) से पूर्वरूप एकादेश प्राप्त होने पर एत्येधत्यूठ्सु' (६।१।८९) से वृद्धिरूप एकादेश होता है।
(४) दीर्घसत्रम् । यहां दीर्घसत्र' शब्द से तत्र भव:' (४।३१५३) से भव-अर्थ में यथाविहित 'अण्' प्रत्यय है। ऐसे ही 'श्रेयस्' शब्द से-श्रायसम् ।
विशेष: देविका-यह मद्रदेश में बहनेवाली एक प्रसिद्ध नदी थी। इसकी निश्चित पहचान देग नदी के साथ होती है जो जम्मू की पहाड़ियों से निकलकर स्यालकोट, शेखुपुरा में होती हुई रावी में मिल जाती है। आज भी उसके किनारे कई प्रकार के बढ़िया, सुगन्धित, बासमती चावल होते हैं (पाणिनिकालीन भारतवर्ष का इतिहास पृ० ५३)। वृद्धिरियादेशश्च
(२) केकयमित्रयुप्रलयानां यादेरियः।२। प०वि०-केकय-मित्रयु-प्रलयानाम् ६।३ यादे: ६१ इय: १।१ ।
स०-केकयश्च मित्रयुश्च प्रलयश्च ते केकयमित्रगुप्रलया:, तेषाम्-केकयमित्रयुप्रलयानाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। य आदिर्यस्य स यादि:, तस्य-यादे: (बहुव्रीहिः)।
अनु०-अङ्गस्य, वृद्धिः, अच:, णिति, तद्धितेषु, अचाम्, आदे:, कितीति चानुवर्तते।
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