Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(पा०) पा, घ्रा, ध्मा, स्था, म्ना, दाण, दृशि, अर्ति (), सर्ति (स), शद, सद् इन (अङ्गानाम्) अगों के स्थान में (शिति) शित् प्रत्यय परे होने पर यथासंख्य (पिब०) पिब, जिघ्र, धम, तिष्ठ, मन, यच्छ, पश्य, ऋच्छ, धौ, शीय, सीद आदेश होते हैं।
उदा०-उदाहरण और भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है।
सिद्धि-(१) पिबति । यहां पा पाने' धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। 'कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से शित् 'शप्' प्रत्यय परे होने पर पिब' आदेश होता है।
(२) जिघ्रति। 'घ्रा गन्धोपादाने (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (३) धमति । 'ध्मा शब्दाग्निसंयोगयो:' (भ्वा०प०)। (४) तिष्ठति । 'छा गतिनिवृत्तौ' (भ्वा०प०)। (५) मनति। 'ना अभ्यासे (भ्वा०प०)। (६) यच्छति। 'दाण् दाने (भ्वा०प०)। (७) पश्यति। दृशिर् प्रेक्षणे' (भ्वा०प०)। (८) ऋच्छति। ऋ गतौ' (भ्वा०प०)। (९) धावति। सृ गतौ (भ्वा०प०)। (१०) शीयते। शलू शातने (भ्वा०आ०)।
(११) सीदति । षट्ट विशरणगत्यवसादनेषु' (भ्वा०प०)। ज्ञा-आदेशः
(३६) ज्ञाजनोर्जा ७६। प०वि०-ज्ञा-जनो: ६।२ जा ११ (सु-लुक्) । अनु०-अङ्गस्य, शितीति चानुवर्तते। अन्वय:-ज्ञाजनोरङ्गयो: शिति जाः। अर्थ:-ज्ञाजनोरङ्गयो: स्थाने शिति प्रत्यये परतो जाउदेशो भवति । उदा०-(ज्ञा) स जानाति । (जन्) स जायते।
आर्यभाषा: अर्थ-(ज्ञाजनो:) ज्ञा, जन् इन (अङ्गयो:) अङ्गों के स्थान में (शिति) शित् प्रत्यय परे होने पर (जा:) जा-आदेश होता है।
उदा०-(ज्ञा) स जानाति । वह समझता है, जानता है। (जन्) स जायते । वह प्रकट होता है, पैदा होता है।
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