Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ- (क्रम:) क्रम् इस (अगस्य) अग को (परस्मैपदे) परस्मैपद-परक (शिति) शित् प्रत्यय परे होने पर (दीर्घ:) दीर्घ होता है।
उदा०-स क्रामति । वह जाता है, चलता है। तो क्रामतः । वे दोनों जाते हैं। ते कामन्ति । वे सब जाते हैं।
सिद्धि-क्रामति। यहां क्रमु पादविक्षेपे' (भ्वा०3०) धातु से वर्तमाने लट् ३।२।१२३) से 'लट्' प्रत्यय है। तिप्तसझि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में परस्मैपद-संज्ञक तिप' प्रत्यय है। कर्तरि श (३१६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे परस्मैपदपरक, शित् शप' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ (आ) होता है। ऐसे ही तस्' प्रत्यय में-क्रामत:। झि' प्रत्यय में-क्रामन्ति । छ-आदेश:
(३७) इषुगमियमां छः७७। प०वि०-इषु-गमि-यमाम् ६।३ छ: १।१।
स०-इषुश्च गमिश्च यम् च ते इषुगमियम:, तेषाम्-इषुगमियमाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-अङ्गस्य, शितीति चानुवर्तते। अन्वय:-इषुगमियमामऽङ्गानां शिति छः। अर्थ:-इषुगमियमामऽङ्गानां शितिप्रत्यये परतश्छकारादेशो भवति।
उदा०- (इषुः) स इच्छति। (गमि:) स गच्छति। (यम्) स यच्छति।
आर्यभाषाअर्थ-(इषुगमियमाम्) इषु, गमि, यम् इन (अङ्गानाम्) अङगों को (शिति) शित् प्रत्यय परे होने पर (छ:) छकार आदेश होता है।
उदा०-(इषु) स इच्छति । वह इच्छा करता है, चाहता है। (गमि) स गच्छति । वह गति करता है, जाता है। (यम्) स यच्छति । वह उपरत होता है, रोकता है।
सिद्धि-इच्छति। यहां 'इषु इच्छायाम् (तु०प०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। तुदादिभ्यः श:' (३।११७७) से 'श' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इसे शित् 'श' प्रत्यय परे होने पर 'अलोऽन्त्यस्य' (१।१।५२) के नियम से षकार को छकारादेश होता है। छे च' (६।१।७२) से तुक्’ आगम और इसे 'स्तो: श्चुना श्चः' (८।४।४०) से चवर्ग चकारादेश होता है। ऐसे ही 'गम्ल गतौ (भ्वा०प०) धातु से-गच्छति । यम उपरमे' (भ्वा०प०) धातु से-यच्छति।
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