Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् होने पर (वृद्धि:) वृद्धि (न) नहीं होती है (तु) अपितु (ताभ्याम्) उन यकार और वकारों से (पूर्वी) पहले (एच) ऐच्=ऐकार और औकार आगम होते हैं।
उदा०-दौवारिकः । द्वार पर नियुक्त पुरुष। दौवारपालम् । द्वारपाल सम्बन्धी द्रव्य। यहां तदादिविधि होती है। सौवरः । स्वरविषय को अधिकृत करके बनाया गया ग्रन्थविशेष।
सिद्धि-(१) दौवारिकः । द्वार+ठक् । द्वार+इक । द् औ वा र+इक । दौवारिक+सु। दौवारिकः।
यहां द्वार' शब्द से तत्र नियुक्तः' (४।४।६९) से प्राग्वहतीय ठक्' प्रत्यय है। ठस्येकः' (७।३।५०) से '' के स्थान में 'इक्' आदेश होता है। इस सूत्र से आदिम अच् को वृद्धि का प्रतिषेध होकर इसके वकार से पूर्व ऐच् (औ) आगम होता है।
(२) दौवारपालम् । यहां द्वारपाल' शब्द से 'तस्येदम् (४।३।१२०) से प्राग्दीव्यतीय ‘अण्' प्रत्यय है। यहां तदादिविधि होती है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(३) सौवरः । यहां स्वर' शब्द से 'अधिकृत्य कृते ग्रन्थे (४।३।८७) से अधिकृत्य अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। वृद्धिप्रतिषेध ऐजागमश्च
(५) न्यग्रोधस्य च केवलस्य।५। प०वि०-न्यग्रोधस्य ६।१ च अव्ययपदम्, केवलस्य ६।१ ।
अनु०-अङ्गस्य, वृद्धि:, अच:, णिति, तद्धितेषु, आचाम्, आदे:, किति, न, यात्, पूर्वं, तु, तस्मात्, ऐजिति चानुवर्तते।
अन्वय:-केवलस्य न्यग्रोधस्याऽङ्गस्य च यकाराद् अचामादेरचस्तद्धिते ञ्णिति किति च वृद्धिर्न, तस्मात् पूर्वं तु ऐच् ।
अर्थ:-केवलस्य न्यग्रोधस्याऽङ्गस्य च यकारादुत्तरस्याचामादेरच: स्थाने, तद्धिते जिति णिति किति च प्रत्यये परतो वृद्धिर्न भवति, तस्माद् यकारात् पूर्वं तु ऐजागमो भवति ।
उदा०-न्यग्रोधस्य विकार इति नैयग्रोधश्चमसः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(केवलस्य) केवल (न्यग्रोधस्य) न्यग्रोध इस (अगस्य) अङ्ग के (अचाम्) अचों में से (आदे:) आदिम (अच:) अच् के स्थान में (तद्धिते) तद्धित-संज्ञक (ञ्णिति) चित्, णित् और (किति) कित् प्रत्यय परे होने पर (वृद्धि:) वृद्धि
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