Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(किम:) किम् इस (अङ्गस्य) अङ्ग के स्थान में (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (क:) क-आदेश होता है।
उदा०-कः । कौन। कौ। कौन दो। के। कौन सब।
सिद्धि-कः । यहां 'किम्' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस 'सु' विभक्ति के परे होने पर किम्' को 'क' आदेश होता है। द्विवचन औ' में-कौ । बहुवचन जस्' में-के। कु-आदेशः
(२६) कु तिहोः ।१०४। प०वि०-कु १।१ (सु-लुक्) ति-हो: ७।२। स०-तिश्च ह च तौ तिहौ, तयो:-तिहो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, किम् इति चानुवर्तते । अन्वय:-किमोऽङ्गस्य तिहोर्विभक्त्यो: कुः ।
अर्थ:-किमोऽङ्गस्य स्थाने तकारादौ हकारादौ च विभक्तौ परत: कुरादेशो भवति।
उदा०-तकारादौ-कुत:, कुत्र। हकारादौ-कुह।
आर्यभाषा: अर्थ-(किम:) किम् इस (अगस्य) अङ्ग के स्थान में (तिहो:) तकारादि और हकारादि (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (कु:) कु-आदेश होता है।
उदा०-तकारादौ-कुत: । कहां से। कुत्र। कहां। हकारादौ-कुह । कहां ।
सिद्धि-(१) कुत: । किम् तसिल्। कु+तस्। कुतस्+सु। कुतस्+० । कुतस् । कुतः।
यहां किम्' शब्द से 'पञ्चम्यास्तसिल्' (५।३ १७) से तसिल्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस तकारादि तसिल' विभक्ति के परे होने पर 'किम्' के स्थान में कु’ आदेश होता है। प्राग दिशो विभक्तिः' (५ ।३।१) से विभक्ति संज्ञा है। तद्धितश्चासर्वविभक्तिः' (१।१।३८) से 'कुतस्' की अव्यय संज्ञा होकर 'अव्ययादाप्सुप:' (२।४।८२) से 'सु' का लुक् होता है।
(२) कुत्र । यहां किम्' शब्द से सप्तम्यास्त्रल' (५।३।१०) से 'बल' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) कुह । यहां किम्' शब्द से वा ह च च्छन्दसि' (५।३।१३) से ह' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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