Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः इट्-प्रतिषेधः
(६) कृसृभृवृस्तुद्रुशुश्रुवो लिटि।१३। प०वि०-कृ-सृ-भृ-वृ-स्तु-द्रु-सु-श्रुव: ५।१ लिटि ७।१ ।
स०-कृश्च सृश्च भृश्च वृश्च स्तुश्च द्रुश्च स्रुश्च श्रुश्च एतेषां समाहार:-कृ०श्रु, तस्मात्-कृ०श्रुव: (समाहारद्वन्द्वः)।
अनु०-अङ्गस्य, न, इड् इति चानुवर्तते । अन्वय:-कृसृभृवृस्तुदुस्रुश्रुवोऽङ्गाल्लिट इड् न।
अर्थ:-कृसृभृवृस्तुद्रुसुश्रुभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरस्य लिट इडागमो न भवति । उदाहरणम्
धातु: शब्दरूपम् भाषार्थ: (१) कृ आवां चकृव। हम दोनों ने किया।
वयं चकम। हम सबने किया। (२) सृ आवां ससृव। हम दोनों सरके।
वयं ससृम। हम सब सरके। (३) भृ आवां बभूव । हम दोनों ने धारण-पोषण किया।
वयं बभृम। हम सब ने धारण-पोषण किया। (४) वृ आवां ववृव। हम दोनों ने वरण किया (चुना)।
वयं ववृम। हम सब ने वरण किया (चुना) । (५) वृङ्
हम दोनों ने सेवा की। वयं ववृमहे। हम सब ने सेवा की। आवां तुष्टुव। हम दोनों ने स्तुति की।
वयं तुष्टुम। हम सब ने स्तुति की। (७) द्रु आवां दुद्रुव। हम दोनों दौड़े।
वयं दुद्रुम । हम सब दौड़े। (८) त्रु आवां सुस्रुव। हम दोनों बहे।
वयं सुत्रुम। हम सब बहे। (९) श्रु आवां शुश्रुव। हम सब ने सुना।
वयं शुश्रुम। हम सब ने सुना।
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