Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-वृत्तो गुणो देवदत्तेन । वृत्त: सम्पादित: । गुण:=पाठ: पदक्रमसंहितारूपोऽध्ययनविशेष: (पदमञ्जरी)। वृत्तं पारायणं यज्ञदत्तेन।
आर्यभाषा: अर्थ-(वृत्तम्) वृत्त इस पद में (णे:) णिजन्त (वृत्तेः) वृत्ति इस (अङ्गात्) अग से परे (अध्ययने) अध्ययनवाची (निष्ठाया) निष्ठा-संज्ञक प्रत्यय को (इट्) इडागम (न) नहीं होता है, यह निपातन है।
उदा०-वृत्तो गुणो देवदत्तेन। देवदत्त ने गुण अर्थात् पदपाठ, क्रमपाठ और संहितापाठ रूप अध्ययन सम्पादित किया। वृत्तं पारायणं यज्ञदत्तेन । यज्ञदत्त ने वेदपारायण आत्मक अध्ययन सम्पादित किया।
सिद्धि-वृत्तम् । वृत्+णिच्+क्त। वृत्+o+त। वृत्त+सु। वृत्तम् ।
यहां णिजन्त वृतु वर्तने (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से अध्ययनवाची निष्ठा-संज्ञक प्रत्यय को इडागम का प्रतिषेध होता है। णिच्' प्रत्यय का लुक निपातित है, लोप नहीं। लोप-निपातन करने से प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्' (१९६२) से प्रत्ययलक्षण गुण प्राप्त होता है। लुक्-निपातन से न लुतमाऽङ्गस्य' (१।१।६३) से प्रत्ययलक्षण गुण नहीं होता है। इडागम-विकल्प:(२०) वा दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पष्टच्छन्नज्ञप्ताः।२७।
प०वि०-वा अव्ययपदम्, दान्त-शान्त-पूर्ण-दस्त-स्पष्ट-च्छन्नज्ञप्ता : १।३।
स०-दान्तश्च शान्तश्च पूर्णश्च दस्तश्च स्पष्टश्च छन्नश्च ज्ञप्तश्च ते-दान्त०ज्ञप्ता: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-अङ्गस्य, न, इट, निष्ठायाम् इति चानुवर्तते।
अन्वय:-दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पष्टच्छन्नज्ञप्ता णेरड्गाद् निष्ठाया वा इड् न।
अर्थ:-दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पष्टच्छन्नज्ञप्ता इत्यत्र ण्यन्ताद् अङ्गाद् उत्तरस्या निष्ठाया विकल्पेन इडागमो न भवतीति निपात्यते। उदाहरणम्
अनिट् इडागम: भाषार्थ: (१) दान्त: दमित:
उपशान्त किया। (२) शान्तः शमित:
उपशान्त किया।
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