Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-दृढ: स्थूल: । मोटा। दृढो बलवान् । बली : सिद्धि-दृढः । दंह+क्त। दंह+त। दृ०+ढ । दृ+ढ। दृढ+सु । दृढः ।
यहां दृहि वृद्धौ' (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से स्थूल और बलवान् अर्थ में इडागम का अभाव तकार को ढकार, हकार और नकार का लोप निपातित है। निपातनम्
(१४) प्रभौ परिवृढः ।२१। प०वि०-प्रभौ ७१ परिवृढ: १।१।। अर्थ:-प्रभावर्थे परिवृढ इति शब्दो निपात्यते। उदा०-परिवृढ: प्रभुः, कुटुम्बीत्यर्थः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रभौ) प्रभु अर्थात् कुटुम्बी अर्थ में (परिवृढः) परिवृढ यह शब्द निपातित है।
उदा०-परिवृढः प्रभुः । कुटुम्बी, परिवार का स्वामी।
सिद्धि-परिवृढः । परि+वृंह+क्त। परि+व+त। परि+o+ढ। परिवृढ+सु। परिवृढः ।
यहां परि-उपसर्गपूर्वक वृहि वृद्धौ' (भ्वा०आ०) इस धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से प्रभु-अर्थ में इडागम का अभाव, तकार को ढकार, हकार और नकार का लोप निपातित है। इट्-प्रतिषेधः
(१५) कृच्छ्रगहनयोः कषः ।२२। प०वि०-कृच्छ्र-गहनयो: ७ ।२ कष: ५।१।
स०-कृच्छ्रे च गहनं च ते कृच्छ्रगहने, तयो:-कृच्छ्रगहनयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-अङ्गस्य, न, इट, निष्ठायामिति चानुवर्तते। अन्वय:-कृच्छ्रगहनयो: कषोऽङ्गाद् निष्ठाया इड् न।
अर्थ:-कृच्छ्रे गहने चार्थे वर्तमानात् कषोऽङ्गाद् उत्तरस्या निष्ठाया इडागमो न भवति।
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