Book Title: Nandanvan Kalpataru 2016 06 SrNo 36
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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यशो विश्वे यस्य स्फुरति सततं तं श्रुतनिधि, सुभक्त्या वन्दे श्रीविजयकमलाचार्यमनिशम् ॥५॥ सुरालीसंकल्पस्फुरदमरधेनुस्तनयुगक्षरत्क्षीरश्रेणीरुचिरुचिरमाभाति वचनम् । यदीयं विश्वेऽस्मिन् सकलसुखसन्तानजननं, सुभक्त्या तं वन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥६॥ शिवास्वामिस्फूर्जन्मुकुटरजनीनाथकिरणवितानोद्योतिश्रीस्फटिकशिखरस्पर्धि सुतराम् । यशो यस्याऽत्यन्तं धवलयति दिङ्नागनिकरं, सुभक्त्या तं वन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥७॥ नवीनादित्यांशुस्फुटबलभिदाशाक्षितिधरशिरःस्मेराशोकाङ्करनिकरविभ्राजि जगति । पुनीते भव्यान् यच्चरणकमलद्वन्द्वममलं, सुभक्त्या तं वन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥८॥ . गुणश्रीपाथोधेरमरविजयस्याऽमलमतिः, क्रमाम्भोरुट्सेवाकरणचतुरो हृष्टहृदयः । हयाश्वाङ्केन्द्वब्दे(१९७७) चतुरविजयः पावनहृदोऽकृताऽऽचार्यस्य श्रीविजयकमलस्याऽष्टकमिदम् ॥९॥

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