________________ / 19 / मूल्यों को सबसे पहले अपनाने का श्रेय हम भारवि (600 ई० ) को देंगे, जिन्होंने अपना 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य इसी नये कलावादी मान दंड से रचा। वे इस युग के आदि प्रतिनिधि-कवि हैं / कलावादी सरणि के उद्भावक हैं / बाद को माव ( 700 ई.) ने भी उनके ही बताथे मार्ग का अनुसरण करके अपने शिशुपालवध' महाकाव्य का प्रणयन किया, यद्यपि कला की दृष्टि से मारवि को अपेक्षा अपने कवि-कर्म में वे कितने ही आगे बढ़ गये और काव्य का कलापक्ष-स्तर काफी ऊँचा उठा गये। इसके अतिरिक्त, कालिदास आदि पूर्ववर्ती कवियों के काव्यों को आधार बनाकर साहित्यशास्त्रियों ने अब काव्य के लक्षण-ग्रन्य मी लिख डाले थे। काव्य का संविधान बन गया। जिसकी विभिन्न धाराओं ने काव्य को खुली स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिये। काव्य अब ढाँचाबद्ध, रूढ़ वस्तु बन गया। इसके शिल्प का स्वरूप संक्षेप में इस प्रकार हो गया-'महाकाव्य सगंबद्ध होना चाहिए. सर्ग न बहुत छोटे भीर न बहुत बडे हो: एक सर्ग में एक वृत्त चलना चाहिए लेकिन अन्त में वृत्त बदल दें; (सर्ग आठ से अधिक हों,) कथा-नायक कोई-धीरोदात्त क्षत्रिय हो, या बहुत सै कथा-नायक भी बन सकते हैं, शृंगार, वीर और शान्त-इन रसों में से कोई एक अङ्गी रस और शेष अङ्ग रस बनने चाहिए; रण, प्रयाण, विवाह आदि घटनाओं का वर्णन हो; बोच-बीच में नियम से प्रातःकाल सन्ध्या, रात्रि, वन, पर्वत, समुद्र आदि प्रकृति तत्वों का चित्रण चलता रहना चाहिए' इत्यादि. इत्यादि / भारवि, माघ आदि ने अपनी रचनायें इसी चारदीवारी के भीतर की हैं / यह था काव्य का पर्यावरण अथवा पश्चाद्भूमि अथवा विकसित रूप जब हमारे कवि श्रीहर्ष इस क्षेत्र में उतरे थे। श्रीहर्ष का कलावैशिष्टय-शिल्प की दृष्टि से श्रीहर्ष का 'नैषधीय चरित' महाकाव्यों के अन्त. गंत हाता है, जिसका स्वरूप हम पीछे बता आये हैं और जिसके पीछे भले हो वे अक्षरशः न मी चले हा। यह कलावादी सरषि की रचना है, जिसके उद्भावक भारवि थे। इस नवीन सराण में लिखे भारवि का 'किरातार्जुनीय', माष का 'शिशुपाल-वध' और श्रीहर्ष का 'नैषधीयचरित'-ये तीन प्रसिद्ध रचनायें आती हैं, जिन्हें साहित्य में 'वृहत्-त्रयो' नाम से पुकारा जाता है / इस सरणी की जहाँ भारवि ने उद्भावना की और इसे काव्य-क्षेत्र में उतारा, माघ ने इसका परिष्कार करके विकासोन्मुख किया, वहाँ श्रीहर्ष ने इसे विकास की चरम सीमा में पहुँचाया। इसीलिए संस्कृत-जगत् में लोकोक्ति ही चल पड़ी है 'तावद् मा मारवेर्माति यावन् माघस्य नोदयः। उदिते नैषधे काव्ये क्व माधः क्व च भारविः // वस्तुतः अलंकृत शैली को सबसे उत्कृष्ट, सबसे बड़ा और अन्तिम रचना नैषध ही है। हम देखते हैं कि कालिदास रघुवंश में एक राजा नहीं, प्रत्युत सारे हा रघुवंशीय राजाओं को भुगता गये / एक ये श्रीहर्ष है, जो इतना बड़ा महाकाव्य लिख गये और राजा नल के चरित के एकदेश का हो चित्रण कर पाये, बाकी छोड़ गये। वास्तविकता यह है कि अन्य कलावादियों की तरह श्रीहर्ष मी-जैसे कि कलावादी सरपि की यह अपनी निजो विशेषता है-वर्णनों के चक्कर में पद