________________ प्रथमः सर्गः 103 छन् (मतुबर्थे ) ठ को इक् +टाप् द्वि०। वैसे देखा नाय, जो 'न कर्मधारयात् मत्वर्थीयः' इस नियमानुसार यहाँ मत्वोंय प्रत्यय न होकर एकः पादो यस्याम् इस तरह ब० वी० करके कुम्भपद्यादि मैं एकपदी शब्द का पाठ पाने से पाद शब्द के अन्तिम अकार का लोप करने के बाद डीप प्रत्यय उंगाकर और पाद को ( भत्वात् ) पदादेश करके 'एकपदोम्' बनना चाहिए था, किन्तु कवि ने 'न कर्मधारयन्मत्वथीयः' इस नियम को अनित्य मानकर मत्वर्थीय ही किया है। पिधाय अपि+ Vवा+ ल्यप् भागुरि के मतानुसार अपि के अ का लोप ) / निदद्रौ/निद्र+लि ! - हिन्दी-तदनन्तर उस समय संभोग की थकान से अलसाया हुआ वह पक्षी ( हंस ) एक पैर पर खड़े होने की स्थिति अपनाये ( और ) गर्दन को तिरछे नीचे झुकाये, पंख से सिर छिपाकर घोड़ी देर के लिए सरोवर के पास सो गया / / 121 / / टिप्पणी-यहाँ कवि ने 'हंस का जाति-स्वभाव बताकर यथावत् बस्तु वर्णन किया है, अतः यहाँ स्वभावोक्ति अलंकार है, 'स्वभावोक्तिरलङ्कारो यथावद् वस्तु-वर्णनम्' इसी का दूसरा नाम जाति भी है / शन्दालङ्कार वृत्त्यन्प्रास है / / 121 / / सनालमात्मानन निर्जितप्रमं हिया नत काञ्चनमम्बुजन्म किम् / अबुद्ध तं विद्रुमदण्डमण्डितं स पीतमम्भ:प्रभुचामरं नु किम् // 12 // - अन्वयः-सः तम् आत्मानन निर्जित-प्रभम् , हिया नतम् मनालम् काञ्चनम् अम्बुजन्म किम् / बेदुम-दण्ड-मण्डितम् पीतम् अम्भः-प्रभु-चामरं च किम् ? ( इति ) अबुद्ध / टीका-सः नलः तम् =निद्राणं, हंसम् अस्मनः स्वस्य यत् प्राननम् =मुखम् ( 10 परपु० ) तेन निर्जिता= परास्ता ( तृ० तत्पु० ) प्रभा= कान्तिः ( कर्मधा० ) यस्य तत् (ब० वी०) अर्थात् नलेन निजमुखद्वारा येन सौन्दय जितामिति कृत्वा हिया = लज्जया नतम् =नम्रम् सनालम् बातम् = काण्डः मृणालदण्ड इति यावत् तेन सह वर्तमानम् (ब० प्र०) सवृन्तमित्यर्थः काम्चसम् = सुवर्णमयम् अम्बुजन्म = अम्बुन्दि जले जन्म यस्य तत् (ब० वी०) अम्बुजम कमलमिति पावत् अन्योऽपि परेण निजितो निम्नमुखी भवति / विद्रमस्य = प्रवालस्य यो दण्ड = (10 वरपु० ) तेन मण्डितम् = अलङ्कृतम् ( तृ० तत्पु० ) पीतम् = पीतवर्णम् अम्मः = जलम् तस्य प्रमुः स्वामी ( 10 तत्पु० ) जलाधिदेवो वरुण इत्यर्थः तस्य चामरम् = प्रकीर्णकम् च किम् ? एकादस्थितो हंसः सदण्डं श्वेत चामरम् प्रतीयते स्मेति भावः / / 122 / 3. व्याकरण-काञ्चन = क चनस्य विकार इति काञ्चन +अञ् ('अनुदात्तादेश्च' ) पा० 4 / 3 / 140, प्रबुद्ध =Vबुध् + लुङ्+तङ् त को ध / है हिन्दी-"मेरे मुख द्वारा सौन्दर्य में हार खाये ( इसीलिये ) लज्जा से झुके, नालदण्ड सहित सोने का कमल है क्या ? तथा मूंगे के दण्ड से मंडित, पीले रंग का जलाधिपति ( वरुण ) का चंवर है क्या ?" ( इस तरह ) नल ने उस ( हंस ) को समझा / / 122 // टिप्पणी-यहाँ अपनी एक लाल टॉग पर खड़ा हुआ और सिर को पंखों के भीतर छिपाये सुवर्णप्रिय हंस नाल-सहित सुवर्ण कमल और मूंगे की मूठबाला वरुण का पीला चंवर जैसा लग रहा था।