Book Title: Naishadhiya Charitam 01
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 155
________________ 114 नैषधीयचरिते __व्याकरण-मुहुर्तमात्रम् कालात्यन्त-संयोग में द्वि० / दयासखाः समास में सखिन् शब्द राम शब्द की तरह अकारान्त बन जाता है। दुरुत्तरः दुर+उत् +त+खल खल् का योग होने से षष्ठी-निषेध होकर 'स्वया' में तृतीया हुई ( 'न लोकाव्ययनिष्ठाखलर्थतनाम्' पा० 2 / 360) हिन्दी-मित्र लोग दया-पूर्ण हो, आँसू बहाते हुए थोड़ी देर संसार की निन्दा के साथ शान्त हो जाएंगे; किन्तु हे माँ ? पुत्रशोक-रूपी सागर पार करना तेरे लिए ही कठिन होगा // 136 // टिप्पणी-संसार में यह स्वामाविक बात है कि यार-दोस्त भाई-बन्धु थोड़ी देर शोक व्यक्त करके बाद को उसे भूल-माल जाते हैं, किन्तु माँ हो एकमात्र ऐसी है, जो भरण-पर्यन्त पुत्र-शोक में जलती रहती है / यहाँ पुत्र-शोक पर सागरत्व का आरोप होने से रूपकालंकार है। 'दया' 'दया' में इलेष 'सखाः' 'सखा' में छेक और अन्यत्र वृत्यनुप्रास है // 136 // मदर्थसन्देशमृणालमन्थरः प्रियः कियदूर इति स्वयोदिते। विलोकयन्त्या रुदतोऽथ पक्षिणः प्रिये स कीडग्मविता तव क्षणः // 137 // अन्वयः-(हे ) प्रिये ! 'मदर्थ-सन्देश-मृणाल-मन्थरः प्रियः कियद्दूरे ( वर्त्तते )' इति त्वया उदिवे ( सति / अथ रुदतः पक्षिणः विलोकयन्त्याः तव स क्षणः कीदृग् मविता ? टोका-हे प्रिये, सन्देशः= वाचिकश्च मृणालम्-विसम्चेति सन्देश-मृपाले (द्वन्द) मद्यम् - इति मदर्थे ( 'अर्थेन सह नित्यसमासो विशेष्यलिङ्गता चेति वक्तव्यम्' ) ( च० तत्पु० ) च ते सन्देशमसाले ( कर्मधा० ) तयोः विषये मन्थर:- मन्दः अलस इति यावत प्रियः = पति: कियच्च तरम् ( कर्मधा० ) तस्मिन् कियद्विप्रकृष्ट पदेशे वर्तते इति शेषः इति स्वया उदिते= कथिते पृष्टे सतीत्यर्थः अथ = अनन्तरम् रुदतः रोदनं प्रकुर्वतः अनिष्ट-वार्ताकथनमयादिति शेषः पक्षिण:विहगान् विलोकयन्त्याः = पश्यन्त्याः तव स क्षणः समयः कोहग = कीदृशो भविता भविष्यति ? मत्सहचराणां रोदनेन मनिधनस्यानुमानं कुर्वत्यास्ते वज्राहतस्येव हृदयस्य तदानी काप्यनिर्वचनीया दशा मविष्यतीति मावः // 137 // व्याकरण-सन्देशः सम् +/दिश् +घञ् / उदिते वद्+क्त व को उ सम्प्रसारण स० 10 / विलोकयन्स्या वि+लोक्+श+प 10 ए० / रुदतः रुद्+शतृ द्वि० व० / भविता/ भू+लुट् / हिन्दी--हे प्रिये,-"मेरे हेतु सन्देश और मृणाल ( मेजने ) के विषय में देरी कर रहा मेरा प्रियतम कितनी दूर है ?" इस तरह तेरे कहने पर बाद को पक्षियों को रोता देखते हुए तेरा वह आप कैसा ( मयंकर ) होगा ? टिप्पणी-उक्त श्लोक में हंस की पत्नी-विषयक चिन्ता बताई जाने से भावोदयालंकार है। 'क्षिषः, 'क्षण:' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है / / 137 // कथं विधातर्मयि पाणिपङ्कजात्तव प्रियाशैत्यमृदुत्वशिल्पिनः / वियोक्ष्यसे वल्लमयेति निर्गता लिपिर्ललाटन्तपनिष्ठुराक्षराः // 138 // अन्वय:-हे विधातः / प्रिया-शैत्य-मृदुत्व शिल्पिनः तव पाणि-पङ्कजात् मयि 'वल्लभया वियोक्यसे' इति ललाटन्तपनिष्ठुराक्षरा लिपिः कथं निर्गता ?

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