Book Title: Naishadhiya Charitam 01
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 109
________________ नैषधीयचरिते जिससे बाण को खींचकर बाहर निकाल देना बड़ा कठिन होता है / रूपकालंकार के साथ साथ यहाँ यह कल्पना भी की जा रही है कि मानों इसीलिये केतक महादेव द्वारा निन्दित किया जाता है कि खबरदार, यदि मेरी पूजा में आया तू / इस तरह उत्प्रेक्षा है, वाचक शब्द न होने से वह गम्य है / शब्दालंकारों में 'देह' 'दाह' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है // 79 / / / त्वदग्रसूच्या सचिवेन कामिनोमनोभवः सीव्यति दुर्यशःपटौ। स्फुटं स पत्रैः करपत्रमूर्तिमिर वियोगिहृ हारुणि दारुणायते // 8 // ___ अन्वय-मनोमय: त्वदा सूच्या सचिवेन कामिनोः दुर्यशः-पटौ सीव्यति, स: स्फुटम् करपत्र. मूर्तिमिः पत्रैः वियोगि-हृद्-दारुणि दारुणायते / टीका-मनोमवः = कामः तव भनम् = अग्रभागः ( 10 तत्पु० ) तत् एव सूची= सीवनसाधन-विशेष: 'सई' इति भाषायां प्रसिद्धः तया ( कर्मधा० ) सचिवेन=सहायेन सहकारिणत्यर्थः (मन्त्री सहायः सचिवः इत्यमरः ) कामिनी कामी च कामिनी चेति कामिनी तयोः (एक शेष द्वन्दः ) दुष्टं यशः दुर्यशः (प्रादि तत्पु.) ते एव पटौ बसने ( कर्मा० ) सीव्यति=योजयबोत्यर्थः अर्थात् काभी कामिनी च त्वामवलोक्य कामोद्रे के मर्यादामुल्लध्य यथेच्छं यत्किमपि कुर्वाणी लोक-निन्दा-पात्रत्वं प्राप्नुतः, सः कामदेवः स्फुटम् स्पष्टं यथा स्यात्तथा करपत्रम् क्रकचम् (क्रकचो. ऽस्त्री करपत्र मारा' इत्यमरः ) तद्वन् मूर्तिः स्वरूपं ( उपमाने तत्पु० ) येषां तथाभूतैः (ब० वी०) पत्रैः दल: वियोगिनश्च वियोगिन्यश्चेति वियोगिनः ( एकशेष द्वन्द ) तेषाम् हृद् हृदयम् (10 तत्पु०) एव दारुकाष्ठम् (काष्ठं दाविन्धनं त्वेधः' इत्यमरः) (कर्मधा०) तस्मिन् दारुणायतेदारुण-वस्तुवत् पाचरति, भीषणीभवतीत्यर्थ अर्थात् क्र कचाकाराणि त्वत्पत्राणि कामिनां हृदयानि विदीर्णानि कुर्वन्ति / / 60 / / - व्याकरण-सूची सूचयति =विधतीति /सूच् +इन् गौरादि-पाठद् डीप / मनोभवः मनसि भवः= उत्पत्तिर्यस्येति / दारुणायते दारुप शब्द यहाँ दारुण पदार्थ परक लेना चाहिये क्योंकि पाचारार्थक क्यङ् उपमान से हो होता है और उपमान हमेशा विशेष्य रहता है, विशेषण नही।' पता नहीं नारायण ने किस तरह 'भोषणवत् आचरति' अर्थ कर दिया है। यही कारण है कि मल्लिनाथ ने 'दारणायते' पाठ दिया है और अर्थ किया है-'दारयतीति दारणः विदारको मेता, स इवापरतीति' अर्थात् आरे-जैसे तुम्हारे पत्ते आरे का काम करते हैं। यह अर्थ ठोक संगत हो जाता है। हिन्दी-कामदेव तेरे नोक रूपी सूई को सहायक बनाकर कामी और कामिनियों को बदनामी के काड़े |सला करता है, वह ( कामदेव ) सचमुच तेरे आरो के से प्रकार के पत्तों द्वारा वियोगी पौर वियोगिनियों के हृदय-रूरी लकड़ी पर दारुय वस्तु का-सा काम करता रहता है / / 80 // टिप्पणी-यहाँ केतकी की नोकपर सूई तथा दुर्यश पर पट का आरोप होने से रूपक है जो दोनों में कार्यकारण भाव होने से परम्परित है / दूसरे श्लोकाध में हृदय पर दारु के आरोप में रूपक १दारणायते, दारूपाक्से।

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