________________ नैषधीयचरिते कारण उत्पन्न वात ( वायुरोग ) से कॉपे हाथ-रूप पल्लव में फल और पुष्प रखे वन-स्थित, ( वेदको तत्र ) शाखाओं वाले वृद्ध महर्षि-गप से मानों उस ( नल ) के आतिथ्यको शिक्षा ली / / 77 // ___ टिप्पणी-यहाँ पल्लव पर करत्वारोप होने से रूपक है, वय वात और शाखि शब्दों में श्लेष है; इनसे उत्प्रेक्षा की भूमि बन रही है, जो वाचक शब्द न होने के कारण गम्य है / रूपक-श्लेषोत्या. पित उत्प्रेक्षा से यह उपमा-ध्वनि निकल रही है कि जिस तरह वृक्ष ऋषिगण राजा नल का फलपुष्पों से अतिथि सत्कार कर रहे थे, वैसे ही वृक्षों ने भी किया। शब्दालंकारों में वृत्त्यनुपास है / 77 // विनिद्रपत्रालिगतालिकैतवान्मुगाङ्कचूडामणिवर्जनार्जितम् / दधानमाशासु चरिष्णु दुर्यशः स कौतुको तत्र ददर्श केतकम् // 78 // अन्धयः-सः तत्र कौतुकी ( सन् ) विनिद्रवीत् मृगाक" जितम् , भाशासु चरिष्णु दुर्यशः दधानम् केतकम् ददर्श। टोका--सः= नलः तत्र = तस्मिन् कानने कौतुकी= कृतूहली सन् विनिद्र-विगता निद्रा येषां तथाभूतानि ( प्रादि ब० वी० ) विनिद्रापि लक्षणया विकसितानि यानि पत्राणि कुसुम-दलानि (कर्मधा० ) तेषां या आलि:= पङ्क्तिः (10 तत्पु० ) तस्यां गताः स्थिता: (स० तत्पु०) ये प्रलयः अमराः ( कर्मधा० ) तेषां कैतवात छळेन मृगा०-मृगः...अतः चिह्न यस्मिन् तथाभूनः (ब०वी०) मृगाङ्कः चन्द्रः एव चूडामणिः शेखरं बस्व तथाभूतः (ब० बी०) महादेव इत्यर्थः तेन धनम् परित्यागः ( तृ० तत्पु० ) तेन अर्जितम् उम्पमित्यर्थः ( तृ० तत्पु० ) प्राशासु दिशासु (दिशातु ककुभः काष्ठा भाशाश्व हरितश्च ताः / इत्यमरः) चरिष्णु समरणशीलं प्रसृतमित्यर्थः दुः दुष्टं यशः दुर्यशः ( प्रादि तत्पु० ) अपयशः दवावम् पारयन् केतकम् केतक्याः पुष्पम् ददर्श अपश्यत् केतकंदलमभ्यस्थितभ्रमरावलि-रूपेण अपकीति पत्ते स्म योग्यपुरुष-वहिष्कारोऽपकीर्तिमेव करोतीति मावः / / 78 // व्याकरण-कौतुकी कौतुकम् अत्तात्तीति कौतुक+इन् / कैतवम् कितवस्य मात्र इति कितव +अण् / चरिशु चरितुं शीलमत्वेति /चर+ष्णुच् कर्तरि / केतकम् केतक्या: विकार इति केतकी+वत् , उसका 'पुष्प-मूलेषु बहुबम्' से लोप और स्त्री प्रत्यय कीप का मी 'लुक् तद्धित०' से लोप। हिन्दी-उस ( नल ) ने वहाँ कौतुक-पूर्व हो खिली हुई पंखुड़ियों को पंक्ति में बैठे भ्रमरों के बहाने महादेव द्वारा त्याग दिए जाने के कारण भर्जित, दिशाओं में फैले अवयशको धारण करता हुमा केवड़े का फूल देखा / / 78 / / टिप्पणी-केवड़े का फूल महादेव के ऊपर नहीं चढ़ता है। इसका कारण शिवपुराणानुसार यह है कि एकवार राम की अनुपस्थिति में सीता ने पितरों का स्वयं श्राद्ध किया। दशरथ मादि पितर प्रकट हुए और केतक आदि समोपपती पदार्थों से कहा कि तुम हमारी उपस्थिति के साक्षी हो / जब राम और लक्ष्मण वापस आये, तो उन्हें पितरों के आने पर विश्वास नहीं हुआ। इतने में सीता ने साक्षियों से कहा कि वे इस बात को प्रमाणित कर दें कि उन्होंने बाद में आये पिवरों को