Book Title: Naishadhiya Charitam 01
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 123
________________ नैषधीयचरिते अन्वयः-स: युव. गह्वरम् पाटलायाः स्तबकम् मयान्धया धिया स्मरेषुधीकृत्य प्रकम्पितः। टीका-सः=नलः युवा तरुषश्च युवती-तरुपी चेति युवानी ( एकशेष द्वन्द्वः ) तयोः द्वयी युगलम् तस्याः चित्तयोःनिमज्जनम् = वुडनम् ( उमयत्र 10 तत्पु० ) तस्मिन् चितानि = ( स० तत्पु० ) यानि प्रसूनानि = पुष्पाणि ( कर्मधा० ) तैः शून्येतरम् = अशून्यम् पूर्णमिति यावत (तृ० तत्पु० ) शून्यात् इतरत् इति शून्येतरत् ( पं० तत्पु० ) गर्भ गह्वरम् = मध्यबिलम् (कर्मधा० ) गर्भस्य गह्वरम् इति ( 10 तत्पु० ) यस्य तथाभूतम् ( ब० वी० ) पाटलायाः= पाटल्याः ( पाटलिः पाटला मोषा' इत्यमरः) स्तबकम्-गुच्छम् (10 तत्पु० ) भयेन-मीत्या अन्धा=मूढ़ा भ्रान्ता इति यावत् ( तु. तत्पु० ) तया धिया=बुद्धया स्मरस्य = कामस्य इषुधिः=तूपीरः (10 तत्षु० ) ('तूणोपासन- तूखीर निषङ्गा ०इषुधियोः' इत्यमरः) अस्मरेषुधिं स्मरेषुधिं कृत्वेति स्मरेषुधोकृत्य भ्रान्त्या कामदेवस्य तूणीर एष इति मत्वेत्यर्थः प्रकम्पितः = कम्पितवान् // 95 / / व्याकरण-द्वयी दौ अवयवो अस्येति द्वि+तयप् , तयप को विकल्प से अयच+ ङोप / स्मरेषुधीकृस्य स्मरेषुधि+क्वि+ल्यप् / हिन्दी-वह ( नल ) युवा-युवतियों के युगल के मनों को डुबा देने में सक्षम फूलों से भरे हुए भीतरी भाग बाले पाटल के गुच्छे को भय से भ्रान्त हुई बुद्धि द्वारा कामदेव का तरकश समझ कर कॉप उठा / / 95 / / टिप्पणी-निमज्जनोचितः भल्लिनाथ ने नि+/मस्ज धातु को ण्यन्त (निमज्जयति ) बनाकर तब ल्युट करके 'डुबो देने में सक्षम' अर्थ किया है जबकि अन्य टीकाकार बिना पिच के ही ल्युट करके चित्तों के 'डब जाने योग्य' अर्थ कर रहे हैं। भाव यह है कि पाटला के सुन्दर भरपूर गुच्छ को देखकर युवा-युगल का चिंत्त उसमें गढ़ जाता है और वह काम-विहल हो उठता है। पाटला जंगली गुलाब को कहते हैं, जो शहरों में बाड़ के काम में थी आता है। यहाँ राजा नल को पाटला-स्तबक पर कामदेव के तरकस का भ्रम होने से थान्तिमान् अलंकार है। 'चित्त' 'चितं तथा 'मिया' 'पिया' में छेकानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है // 15 // मुनिद्रुमः कोरकितः शितिद्युतिर्वनेऽमुनामन्यत सिंहिकासुतः / तमिस्रपक्षत्रुटिकूटमक्षितं कलाकलापं किल बैधवं वमन् // 96 // भन्वयः-अमुना वने कोर कितः शितिद्युतिः मुनिद्रुमः तमिन "क्षितम् वैधवम् कला-कलापम् वमन् सिंहिका-सुतः अमन्यत किल। टीका:-भमुना=नलेन बनेकानने कोरकित्तः=कुड्मल-युक्तः शितिः = कृष्णवर्षा ( शिती= धवल मेचकी' इत्यमरः) पतिः= कान्तिः (कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः (ब० बी० ) मुनिद्रुमः अगस्त्य-वृक्षः तमित्र = तमिस्रम् अन्धकारः ( 'तमिस्र तिमिरं तमः' इत्यमरः ) तस्य पचे= पञ्चदशाहोरात्रा: (10 तत्पु० ) तस्मिन् या त्रुटि:= चन्द्रस्य कला-हासः ( स० तत्पु०) सा एव कूटम् =न्याजः (कर्मधा० ) वेन भषितम् = खादितम् ( 10 तत्पु० ) वैधवम् = विधुः चन्द्रः

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