________________ नैषधीयचरिते हिन्दी-अाश्चर्य की बात है कि हेमन्त ऋतु में भी काम-पीडित उस ( दमयन्ती ) के लिए दिन लम्बाई अपना बैठे (और) भर-पूर ग्रीष्म ऋतु में भी रात्रियों ने ढेरों चर्बी धारण कर ली / / 4 / / __टिप्पणी-मेदसांभराः-रात्रि अमूर्त पदार्थ है, उस पर चों चढ़ाने का सम्बन्ध बाधित है, त्यतः यहाँ लक्षणा करनी पड़ती है अर्थात् जिस तरह चर्बी चढ़ने से किसी व्यक्ति का शरीर फूलकर बढ़ जाया करता है, उसी तरह रात्रि भी बहुत बढ़ गई। यह सादृश्य-सम्बन्ध वाली लक्षणा है। कामवेदना के कारण विरही कामी-कामिनियों के शीतकाल के दिन छोटे हुए भी लम्बे हो जाते हैं और ग्रीष्म काल की छोटी राते भी लंबी बन जाती है-यह स्वाभाविक है। यहाँ हिमागम-रूप कारण के होते हुए भी दिन का लघुत्व रूप कार्य और ग्रीष्य-रूप कारण होते हुए भी रात को लघुता रूप कार्य नहीं बताया गया है, अतः विशेगोक्ति अलंकार है। 'अहो' 'अहो' और 'हिमा' हिमा' में यमक, 'भाव' भुवि' में छेक तथा अन्यत्र वृत्त्यनुपास है // 41 // स्वकान्तिकीर्तिव्रजमौक्तिकस्रजः श्रयन्तमन्तर्घटनागुणश्रियम् / कदाचिदस्या युवधैर्यलोपिनं नलोऽपि लोकादशृणोद् गुणोत्करम् // 42 // भन्वयः-कदाचित् नलः अपि युप-वैर्यलोपिनम् स्वकान्ति...सजः अन्तः घटनागुण...श्रियम् भयन्तम् अस्याः गुषोत्करम् अषोत् / टोका-कदाचित् कमिश्चित् समये नलः अपि यूना तरुणानाम् धैर्यम् धीरतामावम् ( 50 तत्पु.) लुम्पति विनाशयतीत्येवंशीलम् ( उपपद तत्पु० ) स्वकान्ति-स्वस्याः आत्मनः भैम्या इत्यर्थः या कान्तिः सौन्दर्यम् तस्याः कीर्तेः यशसः यो व्रजः समूहः ( सर्वत्र प० तत्पु० ) स एव मौक्तिकस्न / कर्मधा० ) मौक्तिकानाम् सक् (प. तत्पु० ) शुभ्रत्वात् मुक्ताहारः तस्या: अन्तःअभ्यन्तरे या घटना संयोजनम् गुम्फनेति यावत् तस्य यो गुणः सूत्रम् ( च० तत्पु० ) तस्य श्रियम् उध्मोम् शोभामिति यावत् (10 तत्पु०) श्रयन्तम् मनन्तम् अस्याः दमयन्त्याः गुणानाम् सौन्दर्यादीनाम् उत्करम् समूहम् ( प० तत्पु० ) अशृणोत् कर्णगोचरोकृतवान् , नलो लोकमुखेभ्यः दमयन्त्याः सौन्दर्य-कोति-राशिना सहान्यान् गुणांश्चापि श्रुतवान् इति भावः / 42 / / व्याकरण-कान्तिः कम् +क्तिन् मावे / कीर्तिः कृत्+क्तिन् मावे। मौक्तिकम् मुक्ता एवेति मुक्ता+ठक स्वार्थे / ०लोपिनम्-Vलु+णिन् शोलार्थे / उत्करः-उत् +Vs+अण् भावे / - हिन्दी-किसी समय नल भी युवकों का धैर्य तोड़ देने वाला, तथा अपनी कान्ति के यश-समूह के रूप में मौक्तिक-माला गूंथने हेतु भोतरी सूत की शोभा रखे ( अर्थात् सूत का काम देने वाला) दमयन्ती का गुप-समूह सुन बैठा / / 42 / / टिप्पणी-श्लोक का भावार्थ यह है कि नल दमयन्ती के सौन्दर्य-यश के साथ-साथ जुड़े उसके बहुत सारे अन्य गुण सुन बैठा / कवि-जगत् में यश श्वेत होता है, इसीलिए उसपर श्वेत मौक्तिकहार का तादात्म्य किया गया है। हमारे विचार से मूल में 'स्व' शब्द का सम्बन्ध दमयन्ती से न करके नक से करने में अधिक स्वारस्य रहेगा / अर्थ यह होगा कि नल के अपने सौन्दर्य-यश-रूपी मोत्तिकहार के मोतर दमयन्ती का सौन्दर्य सूत का काम दे रहा है अर्थात् दोनों का सौन्दर्य आप से मेल