________________ प्रथमः सर्गः 29 हिन्दी-वह भीम राजा की पुत्री ( दमयन्ती ) बार-बार सुनने में आये, और अपनी रूपसम्पत्ति के योग्य उस नृप ( नल ) में कामदेव की आशा के अधीन बना हुमा ( अपना). मन विशेष. रूप से लगा बैठी / / 33 // पहले स्त्री का प्रेम बताना होता है, उसके पीछे पुरुष का। इसलिए दमयन्तो का नलविषयक अनुराग कव ने पहले बताया है। प्रेम की भी क्रमशः दश दशायें कही गई हैं जिनमें सर्व प्रथम है 'चक्षर गः' अर्थात् 'मोखें लड़ना।' यह उपलक्षणमात्र है, क्योंकि इसके भीतर प्रेमी के गुपनवणादि भी आ जाते हैं / यहाँ नल 'बहुशः अतिगत:' है। दूसरी अवस्था मन के लगाव-मासक्तिको है, वह 'मनः दिदेश' में बता दी गई है। यह अवप्पानुराग आगे के चार श्लोकों में चल रहा है / अलंकार यहाँ छेकानुप्रास और वृत्त्यनुप्रास है / / 33 / / उपासनामेत्य पितुः स्म रज्यते दिने दिने सावसरेषु वन्दिनाम् / पठत्सु तेषु प्रति भूपतीनलं विनिद्ररोमाजनि शृण्वतो ननम् // 3 // अन्वयः-सा दिने-दिने पितुः उपासनाम् एत्य वन्दिनाम् अवसरेषुरज्यते स्म; वेषु भूपतोन् प्रति पठत्सु ( सत्सु ) नलं शृण्वती ( सा ) अलं विनिद्र-रोमा अजनि। टोका-सा=दमयन्ती दिने-दिने - प्रतिदिनम् वीप्सायां द्विस्वम् पितुः-अनकस्य उपासना सेवाम् एत्य = आगत्य बन्दिनाम् - स्तुति-पाठकानाम् अवसरेषु = सरयेषु रज्यते स्म प्रसीदति स्म बन्दिकृतस्तुतिषु एव नलगुणश्रवणसंमवात; तेषु बन्दिषु भूपतोन् = अन्यनृपान् प्रति उद्दिश्य पठसु= स्तुतिपाठ 'कुर्वत्सु सत्सु नलं भूपवती सती मल्लम् =अत्यधिक विनित रोमा विगता निद्रा येषां तथाभूतानि ( प्रादि 20 बी० ) रोमाणि शरीरकामानि ( कर्मधा० ) बस्याः सा (ब० बी०) भनि-जाता, बन्दिमुखात् नलगुणाकर्णनात् सा रोमानिताऽभूदिति भावः // 34 // व्याकरण-उपासना-उप+Vास्+युच् / दिने दिने इति वीप्तायां दित्वम् / एत्यमा+Vs+ल्यप् / वन्दिन् = वन्दते इति। व-द्+इन् / पठसुप +शत ( सत्सप्तमी) एवती/श्रु+शत+ो / मजनि-Vअन्+लुङ। हिन्दी-वह ( दमयन्ती) प्रतिदिन पिता की सेवा में आकर स्तुतिपाठकों के समयों से लगाव रखा करती; और ) राजाओं के विषय में उनके स्तुति-पाठ करने पर नल के सम्बन्ध में सुनती हुई अत्यधिक रोमान्चित हो उठती // 34 // टिप्पणी-इस श्लोक में नायिका का श्रवण-काल बताया गया है जैसे रुट ने मी कहा है•देशे का मङ्गयो साधु तदाकर्षनं च स्यात्'। यहाँ भवण में औरमुक्य और श्रवणानन्तर रोमाञ्च नामका सात्विक माव प्रतिपादित होने से माव-शवकता अलंकार कह सकते है। तीसरे-चौथे पादों के नलं, नलं में यमक है // 34 // कथाप्रसजेषु मिथः सखीमुखात् तृणेऽपि तन्म्या नलनामनि श्रुते / द्रुतं विभूयान्यदभूयतानया मुदा वदाकर्णनसजकर्णया // 35 //