________________ प्रथमः सर्गः 27 'ततोऽन्यत्रापि दृश्यते' से द्वितीया हो गई है। मलीमसः-मलम् अस्मिन् अस्तीति भतुवर्थ में 'ज्योत्स्ना-तमिस्रा० ( पा० 5 / 2 / 14 ) से निपातित किया जाता है। हिन्दी-उस ( नल ) को देखकर--'सौन्दर्य में मैं उस ( नल ) के योग्य हूँ ?' इस विचार से अपने (मुख ) को दर्पण पर देखने हेतु हाथ में रखा दर्पण भैमी (दमयन्ती) को छोड़कर कौन सुन्दरी, ( सौन्दर्य का ) अभिमान खोये, श्वासों द्वारा मैला नहीं कर देती थी ? // 31 // टिप्पणी-नल के साथ सौन्दर्य की प्रतियोगिता में सभी सुरूपाओं का अभिमान चकनाचूर करके कवि रूप में सर्वातिशायी दमयन्ती की अवतारणा कर रहा है। यहाँ काकु-वक्रोक्ति है, जिसकी ‘पया' 'पया', 'दर्प', 'दर्प' में यमक के साथ संसृष्टि है। यहाँ भी मल्लिनाथ के अनुसार सभी स्त्रियों का ऐसी क्रिया के साथ सम्बन्ध न होने पर भी सम्बन्ध प्रतिपादन से असम्बन्धे सम्बन्धातिशयोक्ति है। यथोह्यमानः खलु भोगमोजिना प्रसह्य वैरोचनिजस्य पत्तनम् / विदर्भजाया मदनस्तथा मनो नलावरुद्धं वयसैव वेशितः // 32 // अन्धयः-यथा खलु मोग-मोजिना वयसा उद्यमानः मदनः वैरोचनिजस्य अनलावरुद्धं पत्तनं प्रसह्य वेशितः, तथा ( भोगमोजिना वयसा एव ऊद्यमानः मदनः ) विदर्भजायाः (नलावरुद्धम् ) मनः (प्रसह्य वेशितः)॥ टीका-यथा-येन प्रकारेण खलु प्रसिद्धौ भोग-सर्प-शरीरं भुक्ते = मझयतीति तथोक्तेन ( उप० तत्पु०) (भोगः सुखे स्यादिभूतावहेश्च फण-काययोः' इत्यमरः ) धयसा=पक्षिणा / 'खग बाल्यादिनोवयः' इत्यमरः) गरुडेनेत्यर्थः, उद्यमानः = नीयमानः मदनः कामः प्रद्युम्न इति यावत् वैरो०-विरोचनस्य अपत्यं पुमान् वैरोचनिः=बलिः तस्मात् जायते इति तज्जः तत्पुत्र; बाणासुरस्येति यावत् अनलेन= अग्निना अवरुद्धम् = परिवेष्टितम् पत्तनम् नगरम् शोणितपुरमित्यर्थः प्रसह्य = बलात् वेशितः = प्रवेशितः, तथा भोगम् =सुखम् भुङ्क्ते मोजयतीति वा तथोक्तेन वयसा युवावस्थयेत्यर्थः एव उद्यमानः- तक्यमापः अनुमीयमान इति यावत् मदनः = कामविकारः नलेन अवरुद्धम् = आक्रान्तम् नलासक्तमित्यर्थः ( तृ० तत्पु०) मनः प्रसध-वेशितः चित्रादौ दृष्टम् लोक-मुखाच्च श्रुतं नलं मनसि निधाय दमयन्ती कामपीडिता बभूवेत्यर्थः / / 32 // __ व्याकरण-भोगमोजी -ताच्छील्य में णिन् है। उद्यमानः-Vबह+शानच् कर्मवाच्य / वैरोचनिः-विरोचनस्य अपत्यं पुमान् इति विरोच+इञ् ( अपत्याएं ) / वेशितः- विश+ पिच्+क्त (कर्मणि) / उह्यमानः ऊह +शानच् ( कर्मणि) / विदर्भजा= विदर्भ+/अन् + ड+टाप् / प्रसह्म=+/सह +ल्यप् , अव्यय-रूप में प्रयुक्त / हिन्दी-ज़िप्त तरह भोग-भोजी ( सोपों का शरीर खाने वाले ) वय ( पक्षो गरुड़) द्वारा हे नाया जाता हुआ मदन ( प्रद्युम्न ) अनल (भाग ) से अवरुर (घिरे ) बाणासुर के नगर (शोणितपुर ) में बलात् प्रविष्ट कराया गया था, उसी तरह मोग-मोजी (विषय-मुख-मोग कराने वाले ) वय ( यौवन ) द्वारा (और लोगों से ) जाना जाता हुआ मदन ( काम-विकार ) नल से अवरुद्ध (आसक ) दमयन्ती के मन में प्रविष्ट कराया गया / / 32 / /