________________ प्रथमः सर्ग: का सम्बन्ध न होने पर भी सम्बन्ध प्रतिपादन से असम्बन्धे सम्बन्धातिशयोक्ति मी होने से दोनों की संसृष्टि है। किन्तु विद्याधर ने यहाँ सफलत्व और विफलत्व गुणों तथा स्तुति-निन्दा क्रियाओं का विरोध होने से गुण-क्रियाविरोधालंकार माना है। तदवीक्षि-यहाँ 'तं न वीक्षते इति' में प्रतिषेध की प्रधानता है. अत: 'नम्'प्रसज्यप्रतिषेध है, किन्तु समास कर देने से वह 'पयुदास'-गौणबन गया है, विधेय नहीं रहा / इस कारण यह विधेयाविमर्श दोष है // 28 // विलोकयन्तीभिरजसमावनाबलादमुं नेत्र निमीलनेष्वपि / अलम्भि माभिरमुष्य दर्शने न विघ्नलेशोऽपि निमेषनिर्मितः // 29 // अन्वयः--अजस्र-भावना-बलात् अमुम् नेत्रनिमीलनेषु अपि विलोकयन्तीभिः मामिः अमुष्य दर्शने निमेष-निर्मित: विघ्नलेशः अपि न अलम्भि / टीका-अज०-अजस्रा= निरन्तरा या भावना=यानं चिन्तनं वा (कर्मधा० ) तस्याः बलात् = वशात् ( 10 तत्पु० ) अमुमनलम् नेत्रयोः= नयनयोः निमीलनेषु= संकोचेषु (10 तत्पु० ) अपि विलोकयन्तीमिः पश्यन्तीभिः मामिः=मानुषीभिः प्रमुष्यनलस्य दर्शने विलोकनव्यापारे निमेषैः = नेत्रसंकोचैः निर्मितः= कृतः ( तृ० तत्पु०) विघ्नस्य = बाधाया लेशः = लयः ( 10 तत्पु० ) अपि न अलम्भि-प्राप्तः। यो हि यं ध्यायति स्मरति वा स तद्भावना-भावितः सन् नेत्र-निमीलनेऽपि तमेव पश्यतोति भावः // 29 // व्याकरण-भावना-/भू+'णच्+युच+टाप् / निमीलनम् = नि+मील+ल्युट् भावे। विलोकयन्ती= वि+Vलोक् +पिच् + शतृ + ङोप् / निमेषः-नि+/मिष + क भावे / दिनः-विहन्तीति वि+/हन्+क / अत्तम्भिVलम् +लुङ् ( कर्मणि ), विकल्प से नुमागम / हिन्दी-निरन्तर ध्यान-वश उस ( नल ) को आँख झपकने पर भी देखती रहती हुई भानुषियों ने उस ( नल ) के देखने में आँख झपकने से हुआ विघ्न का लेश भी नहीं पाया / / 29 / / हिप्पणी-देवताओं के ठीक विपरोत मनुष्यों की आँखें झपकती रहती हैं। नल को देखकर मानव-लोक की स्त्रियाँ बराबर उसकी भावना करती रहती थी, इसलिए आँखें झपकने का व्यवधान होने पर भी नल उनके आगे दिखाई देता ही रहता था, आँखे झपके तो क्या, और न झपके तो क्या / इसी को तन्मयता कहते हैं / यहाँ नेत्र निमीलन रूप न देखने का कारण होते हुए न देखनारूप कार्य नहीं हो रहा है, इसलिए विशेषोक्ति अलंकार है / विशेषोक्ति उसे कहते हैं जहाँ कारण होते हुए भी कार्य की उत्पत्ति न हो। किन्तु मल्लिनाथ का कहना है कि मयों में सभी अवस्थाओं में देखने का असम्बन्ध होते हुए भो यहाँ सम्बन्ध बताया गया है, जतः यह असम्बन्धे-सम्बन्धातिशयोक्ति है / / 29 / न का निशि स्वप्नगतं ददर्श तं जगाद गोत्रस्खलिते च का न तम् / तदात्मताध्यातधवा रते च का चकार वा न स्वमनोमवोद्भवम् // 30 // . अन्वयः-का निशि स्वप्न-गतम् तम् न ददर्श ? का च गोत्र स्खलिते तं न जगाद ? का च वा रते तदा...धवा स्त्र-मनोभवोद्भवम् न चकार ? / / 30 / / १-तत्र /