________________ प्रथमः सर्गः ग्याकरण-निमेष:-नि+/मिष् +घञ् मावे / स्तुवता--/स्तु+शतृ+तृ०। स्मरात् यहाँ मीत्यर्थ में पञ्चमी है। नैषधम्-यहाँ मल्लिनाथ 'निषधानां राजानं नलं 'जनपदशम्हात् क्षत्रियादञ् (4 / 1 / 168)" इस तरह जनपदवाचक निषध शब्द से अञ् प्रत्यय लाकर सिद्ध कर रहे हैं, किन्तु यह गलत है, क्योंकि निषध शब्द के आदि में नकार होने से अञ् का 'कुरु-नादिभ्यो प्यः' ( 4 / 1 / 172 ) यह सूत्र बाधकर ण्य कर देता है जिससे नैषध्यः' बनेगा। इसीलिए भट्टोजी दीक्षित ने ‘स नैषधस्यार्थपतेः' इत्यादौ तु शैषिकोऽण' समाधान किया है। इस तरह निषधानाम् अयम् इति निषध+अण् से ही व्युत्पत्ति ठीक है। निषध-देशवाप्ती सामान्य शब्द प्रकरणवश अथवा स्वस्वामिभाव सम्बन्ध से राजा नल का बोधक हो जाता है। निदर्शनम्-निदर्श्यते अनेनेति नि+ Vश्+णि+ल्युट् ( करणे)। अभ्यषेचयत्-अभि+Viसच्+णिच् + लट् , उपप्तर्ग आदि में होने से 'स' का 'ष'। हिन्दी--"मरे हुए ( अतएव ) बिना झपके (खुली) आँखों वाले कामदेव से मैं डरती हूँ, इस कारण दूसरा उदाहरण रखो" इस तरह वह ( दमयन्ती ) युवकों की प्रशंसा करती हुई सखियों दारा उस ( कामदेव ) के स्थान पर नल को उदाहरण रूप में रखवाती थी।। 36 / / टिप्पणी-परासोः-कामदेव जगत में सौन्दर्य का सर्वोच्च प्रतिमान माना जाता है। यही कारण है कि सखियों जिस वि.सी सुन्दर युवक की तुलना करती, तो उपमान कामदेव को बनाती थीं। दमयन्ती को यह अच्छा नहीं लगता, क्योंकि कामदेव को महादेव ने फूक डाला था अतः मरे हुए तथा खुली पड़ी आँखों वाले से वह अब उरतो थी। इसलिए सर्वोच्च प्रतिमान वह अपने प्रियतम नल को हो बनवाती थी। 'अभ्यषेचयत् शब्द से यह भी ध्वनित होता है कि जब सौन्दर्यराज्य का एकच्छत्र सम्राट-कामदेव-मर गया, तो उसके खाली पड़े स्थान में दूसरा सम्राट् गद्दी पर बैठेगा ही और वह नया सौन्दर्य-सम्राट् बना नल / विद्याधर के अनुसार 'अत्र गुणसंकीर्तनलक्षणा स्मरदशोक्ता' अर्थात् प्रियतम के गुणवर्णन नाम की कामदशा बताई गई है // 36 // नलस्य पृष्टा निषधागता गुणान् मिषेण दूतद्विजवन्दिचारणाः / निपीय तत्कीर्तिकथामथानया चिराय तस्थे विमनायमानया // 37 // अन्वयः-निषधागताः दूत-द्विज-बन्दि-चारणाः मिषेण नलस्य गुणान् पृष्टाः अथ तत्-कोतिकथाम् निपीय प्रनया चिराय विमनायमानया तस्थे / टीका-निषधेभ्यः = निषधदेशात् भागताः=आयाताः (पं० तत्पु०) दूताः= चाराश्चद्विजाः= ब्राह्मणाश्च वन्दिनः स्तुति -पाठकाश्च चारखाः = देशभ्रमणजीविनश्चेति ( द्वन्द्व ) मिषेख%=(केनापि ) व्याजेन नलस्य गुणान् =सौ दर्यादीन् पृष्टाः=अनुयुक्ता अर्थात् भवतां देशे को राना के च तस्य गुणा इति व्याजेन दमयन्त्या नलविषये पृष्टा अथ प्रश्नानन्तरम् तस्य नलस्य या कीर्तिः = यशः तस्य कथाम् =वर्णनमित्यर्थः (10 तत्पु०) निपीय त्वेत्यर्थः अनया = दमयन्त्या चिराय चिरकालं =विगतं मनो यस्याः सा विमनाः (पादि ब० ब्रो०) तदत् आचरन्त्या = विमनीमवन्त्या व्याकुलचित्तयेति यावत् तस्ये =स्थितम् / एतादृशो गुणी राजा कथं मया लम्बव्य इति तद्-विमनस्कतायाः कारणम् / / 37 //