________________ नैषधीयचरिते . व्याकरण-गुणान् पृष्टाः- पच्छ धातु द्विकर्मक है। क्त प्रत्यय गौण कर्म में होने से * चारपाः प्रथमान्त हो गया और गुणान् द्वितीयान्त ही रहा। निपीय-नि+/पोङ् + ल्यप् , विशेष के लिए इसी सर्ग का प्रथम श्लोक देखिये। विमनायमानया-विमना इव आचरतीति विमना+क्यङ्, स लोप, शानच् +टाप् ( नामधातु)। हिन्दी-निषध देश से आये दूत, ब्राह्मण, स्तुतिपाठक और भाट ( किसी) बहाने नल के गुषों के सम्बन्ध में ( दमयन्तो द्वारा ) पूछे जाते थे; बाद को उस ( नल ) के यश की कया सुनकर वह देर तक अनमनी-सी खड़ी रह जाती थी / / 37 // टिप्पणी-विमनाय०-दमयन्ती नल के गुणों को सुनकर सोच में पड़ जाती थी कि मला मैं उसे प्राप्त भी कर सकूँगी। इस तरह यहाँ चिन्ता नाम का व्यभिचारी माव उदय हो रहा, अतः भावोदयालंकार है। तीसरे, चौथे चरण में 'नया' 'नया' में यमक है और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास / ___ उक्त पाँच श्लोकों में कवि ने दमयन्तीगत नल-विषयक श्रवणानुराग के चित्र खींचे हैं। अब भागे चित्र और स्वप्न आदि में दर्शनानुराग का चित्र खींचना है / / 37 // . प्रिय प्रियां च त्रिजगज्जयश्रियौ लिखाधिलोलागृहमित्ति कावपि / इति स्म सा कारुवरेण लेखितं नलस्य च स्वस्य च सख्यमीक्षते // 38 // अन्वयः-"(हे कारुवर !) अधिलीलागृहभित्ति त्रिनगज्जयिश्रियो को अपि प्रियम् प्रियाम् च लिख" इति सा कावरेण लेखितम् नलस्य स्वस्य च सख्यम् ईक्षते स्म / टोका-लीलार्थ गृहम् लीलागृहम् ( च० तत्पु० ) = क्रीडागृहम् तस्य या भित्ति. = कुड्यम् तस्याम् इति अधिलीला० ( अव्ययी भावः ) लीलागृहभित्ती इत्यथः, त्रयाणां जगतां समाहार इति त्रिजगत् ( समाहार-द्विगुः ) तत् जति = प्रतिशेते इति जयिनी (उपद तत्पु० ) श्रीः शोमा ( कर्मधा० ) ययोः तथाभूतयोः (ब० वी०) को अपि = अनिर्दिष्टनामानौ प्रियम् = नायकम् प्रियाम् = नायिकाश्च लिख = चित्रय इति एवं सा दमयन्ती कारुषु शिल्पिषु वरःश्रेष्ठः निपुष इत यावत् तेन ( स० तत्पु०) लेखितं नित्रगतं कारित नलस्य स्वस्था- आत्मनश्च सख्यम् रूप-साम्यमित्यर्थः ईक्षते स्म = पश्यति स्म अर्थात् रूपे यथा नठा मम समः तथाऽहमपि तेन सभा / / 3 / / म्याकरण- भधिलीला०-यहाँ सप्तम्यर्थ में 'अधि' के साथ अव्ययीभाव समास है अर्थात् (मित्ति पर ) लेखितम्/लेख + पिच्+क्त कर्मणि लिखाया अर्थात् चित्रित कराया हुआ। सख्यम् सखि+ध्यञ् मावे। हिन्दी-("ओ कुशल कलाकार ! ) क्रीडा-गृह की दीवार पर तीनों लोकों को परास्त कर देने वाले सौन्दर्य को रखे हुए किन्हीं दो प्रिय और प्रेयसी का चित्र बना दो' इस तरह (आशा देकर ) वह चतुर कलाकार द्वारा चित्रित करवाया अपना और नल का साम्य देखती थी / / 38 // टिपणी-इस श्लोक में दर्शनानुराग आरम्म करता हुआ कवि पहले प्रतिकृति अर्थात् चित्र में मियतमा को प्रियतम का दर्शन करवा रहा है। रूप-साम्य देखकर दमयन्ती को निश्चय हो जाता है कि वह उसके सर्वथा योग्य है / 'सख्यम्' में सखि शम्द यद्यपि मित्र का काचक है, तथापि साहित्य