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मुंहता नैणसीरी ख्यात
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पावो ।' तद जोगी कह्यो - ' इयै कमंडळ मांहि पांणी छै, थे पीवो, अर घोड़ो तिसियो हुवै तो घोडानूं ही पावो ।" पछै सलखैजी आप ही पीयो, र घोड़ेनू ही पायो । पण कमंडळ खाली नही हुवो तद सलखैजी दीठो' जु 'प्रो अतीत सिद्ध ।" तद आप अरज कीवी । 'और तो सर्व थोक छै, पण म्हारै पुत्र नही छै । तद सिद्ध मेखळी माहे हाथ घातने गोटो १ बभूतरो, सोपारी ४ काढ दीवी ।" 'श्रो बभूतरो गोटो राणीनू देई, तेरे वडो पुत्र हुसी । तैरो नांम मलीनाथ काढे ।" और च्यार पुत्र बीजा हुसी ।" वडै बेटेनू टीको देई । " तद पाछा घरे पधारनै जे भात' जोगी कह्यो हतो ते भांत राणियांनू बभूतरो गोटो, सोपारिया विहच दीवी । " पछै कित रैकै दिने पुत्र हुवो । फेर ४ पुत्र बीजा हुवा । पछे कित रैके" दिने वडै बेटैन टीको दियो । जोगीनू बोलाय, जोगीरा ग्राभरण पैहराय रावळ मलीनाथ नांम दियो ।” पछै सुख सौ राज कियो । तपो बळी हुवो ।
॥ वात राव सलखैजीरी संपूपं ॥
I इस कमंडल मे पानी है सो तुम पी लो और यदि घोडा प्यासा हो तो उसको भी पिला दो । 2 देखा, जाना । 3 यह साघु सिद्ध है । 4 श्रीर तो सव वातें हैं, परंतु मेरे पुत्र नही है । 5 तब सिद्धने झोलीमे हाथ डाल कर उसमेंसे विभूति ( भस्मी ) का एक गोला और चार सुपारियां निकाल कर दी। 6 भस्मी का यह गोला वडी रानी को देना, उसके वडा पुत्र होगा और उसका नाम मल्लिनाथ दिलवाना । 7 और चार पुत्र दूसरे और होगे । 8 वडे बेटे (मल्लिनाथ) को टीका देना । 9 जिस प्रकार | 10 वॉट दी । II कितने एक । 12 योगीको उस समय बुला कर (वर्ड वेटेको) योगीके वस्त्र पहिना कर उसका नाम रावल मल्लिनाथ रखा गया ।