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अथ वात लोहिलारी मोहिल सुरजनोत चहुवाण छापुर-द्रोणपुर धणी हुवो तिणरी हकीकत । चहुवाण नै मोहिला विचे इतरी पीढी -
१ चहुवांण । २ चाह, चहुवांण रो बेटो। ३ घणसूर* रांण चाह रो बेटो । गग पिण कहांणो। ४ रांणो इद्रवीर । ५ राणो अरजन । ६ रांणो सुरजन । ७ राणो मोहिल । रांणा सुरजनरो बेटो। मोहिलरै पेट
रा मोहिल कहांणा । मोहिल छापर-द्रोणपुररो धणी हुवो। मोहिलसू आ धरती मोहिलावाटी
कहांणी । सदा छापररो परगनो कहीजतो। पाडवा कैरवांरी वार मांहै, तद छापररै परगने द्रोणाचारज आयो ।' आपरै नांवै सहर छापर ता कोसै २ वसायो। काळोडूंगर कहीजै छै तिणरी जडा सहर वसायनै द्रोणपुर नाम दिरायो।' द्रोणपुररी बे हाटा सूधी प्रो ठोड लियै रहै द्रोण । द्रोणपुर काळे * चार अन्य प्रतियोमे से दो प्रतियो मे, घणर' एक मे 'धणसूर' और एक मे 'वणसूर' नाम
भी लिखे मिलते है। .'वेहटा' और 'वहाटा' पाठ भी कई प्रतियोंमे मिलता है।
____ I सुरजनका बेटा मोहिल चौहान छापुर-द्रोणपुरका स्वामी हुआ उसके सम्बन्धकी हकीकत। 2 चौहान और मोहिलो के बीच (मोहिल और उसके वशजोमे) इतनी पीढियें है। 3 घणसूर राणा चाहका वेटा । इसका नाम गग भी कहलवाया। 4 मोहिल राणासे उत्पन्न उसके वशजोकी अल्ल मोहिल कहलाई। 5 मोहिलके नामसे इस धरतीका नाम 'मोहिलावाटी' प्रसिद्ध हुआ। 6 पहले इस धरतीको 'छापरका परगना' ही कहा जाता था। 7 पाडवो कौरवोके समयमे महर्षि द्रोणाचार्य छापरके परगनेमे पाये थे। 8 छापर मे दो कोस पर अपने नामसे शहर बसाया। 9 'काळो डूगर' (काला पहाड) के नामसे प्रसिद्ध पहाड है, उसकी तलहटीमे शहर बसा कर द्रोणपुर नाम रखा। 10 द्रोणने द्रोणपुरके दो बाजारो (दो उप-वस्तियो) जितनी इस जगहको घेर रखा है।