Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 298
________________ २६० मुहता नैणसीरी ख्यात गोरै वादळनू दीठा ।' ताहरा मूळूरा पग ठहै पड़े नहीं । ताहरां गोरै कह्यो-'वादळजी । देखो छो ! मालणरा पग ठाहै पड़े न छै । सु जाणा सागमरावरो बीज छै । ताहरां वादळ कहै-'हवै-हवे! माळीर घरै सागमरावजीरो डेरो हुतो ।' ताहरां इतरो सुणनै मूळू भीतर गयो । हजूर जायनै फूलारी छाब उतारी। मूळू उठ. विसोढेनू देख राम-राम कियो ।' ताहरा विसोढो ऊठ ऊभो हुवो। सुभराज कियो।' ताहरां विसोढे कह्यो-'महाराज ! मूळ मुजरो कियो छ ।' इतरै तो मूळू कटारी लेयनै राजा पास जाय बैठो।' कह्यो-'जो राज ऊठिया तो मारीस 110 ताहरां राजा कह्यो-'किही भात छाडै ही ?11 मूळू छाडै नहीं। ताहरां मूळ कह्यो-'थारी बेटी देवो तो छाडू । बिना वेटी दिया छाडै नही।12 ताहरां राजा कह्यो-'बेटी दियां बिना तू म्हनै छाडै नही ?' ताहरा राजा घणा ही जतन किया, पण मूळू माने नही । ताहरा राजा बेटी कबूली। मूळू राजारी बेटी उठेहीज परणी। श्री ठाकुरद्वारै माहै परणीज, उवैहीज घडी कुवरीरो हाथ पकड महल माहै जाय सूतो। ताहरां राजा वीसळदेजीनू वडो धोखो हुवो । जु मूळू घणी कीवी । ताहरां रात आधीरै समै गोरो वादळ हजूर आया। प्रायन कह्यो-'म्हासू तो आ बात सही न जाय । 'जु थाहरी बेटी मूळू जोरा ____1 तव मूलूने गोरा और वादलको देखा। 2 तव गोरेने कहा--बादलजी ! देखते हो । मालिनके पाव ठिकाने नही पड़ रहे है। 3 ऐसा मालूम होता है जैसे कोई सागमरावका वीज (सतति) है । 4 तर वादल कहता है कि-हा-हा, मालीके घर सागमरावजीका डेग था। 5 इतना। 6 मूलूने उधर विसोढाको देख करके राम-राम (जुहार) किया। 7 तव विसोढा खडा हुआ और शुभराज किया। (शुभराज याचकोकी अोरसे कहा जाने वाला एक आशीर्वादात्मक वचन ।) 8 महाराज | मूलूने मुजरा किया है। 9 इतनेमे तो मूल कटारी लेकर राजाके पास जा बैठा। 10 जो आप खडे हुए तो मार दृगा। II किसी भी प्रकार छोडे भी ? 12 तुमारी लडकी मुझे दो (व्याहो) तो छोड़ । वेटीको दिए विना छोड़ नही। 13 तव राजाने वेटी देना कबूल किया और वही पर राजाको वेटीको मूलूने व्याहा। 14 (महलोंके) श्रीठाकुरद्वारामें विवाह कर उसी समय कुबरीका हाथ पकड और महलमें लेजाकर सो गया। 15-16 तव राजा वीसलदेजीको वडा पश्चाताप हुआ कि मूलूते खूब की (गजवकी बात कर दी)।

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