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मुहता नैणसीरी ख्यात
[ २६३ वीमाह दियो । तद मूळू आपरो बेटो मांगियो ।' पंण सांवतसी दियो नही । कह्यो-प्रो थांरों बेटो छे । म्हने घणी भीड़ पड़सी तद म्हारै वडे कांमं वसी ।" ताहरा मूळ बेटैनूं पण दे गयो
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बेटे नांम कांधळ | तिको कांधळ सांवतसी पासै रहे । जनाने नावे | हथियार कपड़ो और ही वस्तु जनांने नांवे हुवै सु नही ढाबै । " यु करता कांधळ रोज सोनैरी थाळी मांहे जीमै । रोज गोळियैस थाळी भाजे । "
क दिन कान्हड़देरी मा को - रोज थाळी भांज ना, भाठे ऊपर ठरकाय ।" ताहरां उवै ऊपर ऊहीज गोळियो वाह्यो । काँनरै लागो, कां तूटो | धड हुंती ढह पड़ी। रांणी क्यु ही कह्यो नही । "
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इसड़े अलावदीन जालोर ऊपर आयो । सोनगरांसू लडाई हुई । कांधल खाडारै मुंह हुतो, सु लडतां सात - वीसी खांडा भागा | खांडा खुटा । कटारी पकड ग्रर कांम आयो* 1 20
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I तव मूलूका दूसरा विवाह कर दिया । 22 फिर मूलूने अपने पुत्रको माँगा । कहा कि यह लडका तुम्हारा है, परतु मेरेमे प्रति संकट पडेगा तव यह मेरे बडा काम श्रायेगा । 4 तव मूलू अपने वेटेको भी दे गया । 5 बेटेका नाम काँधल जो सांवतसीके पास ही रहता है । जनानामे नही आता है । शस्त्र, वस्त्र ग्रादि कोई वस्तु स्त्री नामपरक होती है, उसे ग्रहण नही करता । 6 इस प्रकार रहते हुए कांधल नित्य सोनेकी थाली में भोजन करता है और (स्त्रीलिंग वस्तु होने के कारण ) नित्य गुलेल से तोड देता है । एक दिन कान्हड़देकी मा ने कहा कि इस प्रकार पत्थरसे ठरका कर नित्य थालीको मत तोड | 8 तव उसके ऊपर ही गुलेल मार दी । कानके लगा सो कान टूट गया और धड़ सहित गिर पडी, परतु रानीने कुछ भी नही कहा । 9 उन्ही दिनो अलाउद्दीन जालोर पर चढ कर श्राया । 10 कार्बल खाडो (शस्त्रो) के सम्मुख था, सो काधलके लडते हुए १४० खाँडे टूट गये, तब कटारी (स्त्रीलिंग शस्त्र) पकड कर काम श्रा गया ।
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*डाह्याभाई पीताम्वरदास देरासरी द्वारा गुजराती मे रूपान्तरित 'कान्हडदे प्रबन्ध' मे भी काधलके सर्व्वन्धमें कवि पद्मनाभने यही बात कही है
संहु पहेला राये मोकल्यो, धिंगाणे कावल भडभडायो । २०६ कटक तुरक नु सूडयु भलु, ग्राठ पहोर धिंगाणु थय । ( २०७ - १)
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X X वाळ हुमला हल्ला करतो, कावल लड़तो दीठो । २०६