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मुहता नैणसीरी ख्यात मेल्हो ।1 ताहरां विसनदास सांगमरावजीनू कहायो-'थे बेहनेई छो, तीयै कारण प्रासंगो कियो। वेम देवां नही । ताहरां सांगमराव मानी नही नै लडणनू चढियो। ताहरा आचानण सांगमरावजीनू कहियो-'जु राज ! चढीजै नही । घोड़ीरो वेम हू ले आईस । ताहरां आचानण पीहर गई। जायनै भाई विसनदास पासा बछेरो मागियो । कह्यो-'भाई ! हूं जांणीस म्हनै दायजै दियो ।4 ताहरां विसनदास तो वछेरो देवै नही। ताहरां चानण भाई विसनदासरै धरणे बैठी ।' आचानण दिन २ भूखी रही। पण विसनदास तो मांन नही। ताहरां आचानण अठैसूं वहीर हुई सो आगलै गांम उत्तरी । जीमण करोयो।' आपरा लोग हुंता सो सारा बोलाय वात पूछी। कह्यो-'अब हूं कासू करूं ?' मांटी छै सु तो साळसू टळे नहो । घोड़ो छोडै नही। ताहरां हूं मांटीनं वरज अर हूं पीहर घोड़ो लेवणनूं आई हुती, सु म्हारी वात पीहर भाई पण मांनी नही । हमै ह कासू करूं ?' ताहरां लोकां कह्यो-'थांहरै दाय ओवै सु करो। ताहरां भला-भला ठिकाणा रजपूतारा हुता तेथ गई, पण केही झाली नही ।
ताहरां गांम भेळू रामचंद इंदो रहै, तठे आचानण गई। ताहरा रामचद ईंदै कह्यो-'तू म्हारै माथै समी छै। तू भलाई नू
___I घोडी व्या गई है, हमने वोखा किया, वछडा भेज दो। 2 आप वहनोई है, इस मयको लेकर उसमे (अपनत्वकी) प्रासक्तिकी है, इसलिये वेम नही दूगा । 3 घोडीके वडेको मैं ले पाऊगी। 4 मैं जानूगी कि मुझे दहेजमे दिया है। 5 तव प्राचानण अपने भाई विसनदासके यहाँ घरना देकर बैठ गई। 6 तव आचानण यहासे रवाना होकर अगले गाव व्हगे। 7 वहा भोजन बनवाया। 8 अपने साथमे जो प्रादमी थे उन सवको अपने पास बुला कर पूछा। 9 अव मैं क्या करूं? 10 मेरा पति सो तो अपने मालेले चूकाता नही और घोडा छोडता नही । भाईके ऊपर चढ कर पाते हुए पतिको रोक ना मैं यहा पीहरी अपने भाईके पान घोडा लेनेको पाई थी, परन्तु पीहरमे मेरी बातको भी भाईने माना नहीं। II तृमारे जचे सो करो। 12 तब वह राजपूतोके अच्छेमन्टे टिकाने थे वहा गई, परन्तु किमीने इमे स्वीकार नहीं किया। 18 तव भेलू गावमे जहा गमचद ईदा रहता है, उसके यहा प्राचान गई।