Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 295
________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २८७ ताहरां हेक दिन, सोमवाररै दिन राजा वीसळदेजी चौगान खेलणनू चढिया । ताहरां मूळू पण तयार हुवो, फोजां मांहै आय भिळियो अर पूछियो- 'जु, विसोढो चारण कठे छ ?' लोका बतायो-'जु, राज ! राजा हाथी असवार छ, त? वात करतो हालै छ । ताहरां मूळू चलाय घोड़ो पर विसोढेजीसू प्राय राम-रांम कियो। ताहरां विसोढो दूहो कहै वीसोढा ! प्रा वार, वीसलदे कहिजै विगत । ___ो मूळ असवार, सगळा देखे सांगउत ॥ १ ताहरां विसोढे कह्यो-'महाराज ! मूळ हाजर छ ।' तद राजा देखियो । मूळू मुजरो कियो । फेर दूहो जाडी फोजां जेथ, वीसल की चहुंचे वलां। सेल तुहारो तेथ, सुरतांण उर सांगउत ॥ २ कोई सुरतांण वीसळदेरी फोजां माहै हुतो, तिणनूं मार चालतो हुवो।' वांसैसू फोजां विदा हुई–'जु, जावण न पावै । आगै जावतां वीचमे हेक खाळ आयो', ताहरां मूळूरो घोड़ो तो पार हुवो। ___I एक बार सोमवारके दिन राजा वीसलदे मैदानमें खेलने के लिये चढा। 2 सेनामें प्राकर शामिल हुआ। 3 विसोढा चारण कहा है ? 4 जहा राजा हाथी पर सवार है वहां वह उससे बात करता हुआ चल रहा है। 5 (दोहेकी उक्ति मूलूकी है, विसोढाकी नही होनी चाहिये।) दोहेका भावार्थ मूळ की उक्तिमे हे विसोढा ! तू वीसलदेको इसी समय मेरे परिचय सम्बन्धी सब वृत्त कह दे और कह दे कि यह घोडे पर सवार सागमरावका पुत्र मूलू आ गया है और उसे अव सभी देख रहे है । (भावार्थ, विसोढाकी उक्तिमे-विसोढा कहता है कि हे वीसलदे | अब तुझे उसका परिचय दे रहा हूं। यह घोडे पर सवार सागमरावका पुत्र मूल तेरे सामने उपस्थित है और उसे अव सभी देख रहे है ।) 6 दोहेका भावार्थ विसोढाकी उक्ति सागमरावके पुत्र मूल । वीसलदेने जिस जगह पर बहुत सी फौजें चारों ओर खडी की है, उनमे वह फौजोका सरदार सुरतान खड़ा है, उसका उरस्थल तेरे सेलकी प्रतीक्षा कर रहा है। 7 (विसोढाके सकेतानुसार) वीसलदेकी फौजोंमें कोई एक मुरतान था उसको मार करके मूलू चलता बना। 8 पीछेसे फोजें चढी और उन्हें आजा हुई कि वह जाने न पावे। 9 आगे जाते हुए वीचमे एक नाला पाया।

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