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मुहता नैणसीरी ख्यात
[ २८३ आव । ताहरां रामचंद ईदै राखी। घरवास कियो ।' ताहरा आचानण दूहो कहै
देसी बोर दबूकड़ा, केही* खलां सिरेह ।
कुंडलरै प्राचानणे, भेल रे ईदेह ॥ १३ ताहरां ईदा छै सु सारा ही हथखारै सातरा थका रहै । यु करतां छव मास हुवा । ___ ताहरां एक दिन सांगमराव गामरो एक जोगी ईंदार गाव गयो । जोगी, रामचद ईदारै घरै भिक्षायूँ गयो । ताहरां जोगो अलख जगायो । ताहरां जोगीनू आचानण ओळखियो।' ताहरा आचानण छोकरीनू मेल्हनै जोगीनू घर मांहै बुलायो। ताहरां जोगी कह्यो'अरी माई आचानण ! तू इहां कहां?' ताहरा आचानण बोली'आयसजी ! म्हारी खबर नही ?" ताहरां प्रायस कह्यो-'जु या खबर है जु घोड़े कू गई है पीहर, सो घोडा ले आवेगी।' ताहरां जोगी नौं रुपियो १), पडलो १ दियो। सोहरो राखियो । जीमायो । रात राख, जोगीनू सीख दीवी। अ समंचार कह्या-'ठाकुरांनू कह्या - म्हारोतो थां मुलायजो न कियो, जो म्हारै भाईनू मारणनै चढियो।10 ताहरां ठाकुरांनू राख हूं पीहर आई।1 ताहरा पीहर वाळां पण म्हारो कुरब राखियो नही । ताहरां म्हनै तो सासरै पीहर कठे ही
___I तू मेरे सिरके समान है, तू खुशीसे मेरे यहा श्रा जा। 2 तब रामचन्द इंदेने रख कर उससे घरवास किया। 3 दोहेका भावार्थ-अब वोर घोडी शत्रु अोके सिरो पर (शत्रुओ पर) दौड़े करना शुरू कर देगी। कुडल पर और आचानरणके कारण भेलूके ईदो (रामचद) पर तो निश्चय ही करेगी। 4 अब सभी ई दे (सागमरावके चढ कर पानेकी प्रतीक्षामे) हाथोका खार खाए हुए सज्ज होकर रहते है । इस प्रकार छ महीने बीत गये। 5 आचानणने जोगीको पहचान लिया। 6 प्राचानणने दासीको भेज कर जोगीको घरमे बुलवाया। 7 क्या मेरे यहाँ पाने की खबर नही है १ 8 तब जोगीको एक रुपया
और एक वस्त्र दिया । अच्छी तरहसे रखा, भोजन कराया और रात भर रख करके (प्रातः) विदा किया। 9-10 ठाकुरको कहना कि मेरा तुमने कुछ भी मुलाहिजा नही रखा और मेरे भाईको मारनेके लिए चढ चले। II तव ठाकुरको बरज करके पीहर आई। 12 तब पीहर वालोने भी मेरा कुरव नही रखा।
* पाठांतर - काही।