Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 292
________________ २८४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 1 ठोड नही । तद है विचार यर रामचंद ईंदैरं पले ग्राई । हमें ठाकुर तो म्हें दिसिया गई कर जाय । " ताहरा जोगी पाछो गयो । जायनै सागमरावन् कह्यो - 'ग्राचानण कहा ?' ताहरां सागमराव कह्यो - " बछेरैनू गई छे ? 24 ताहरां जोगी को - 'बाबा ! वछेरा दिया नही । ताहरां प्राचानण रीस कर रामचद ईंदैरै घरमे बडी । " 6 तारा सांगमराव उठ श्रर नगारो करायो । सागमराव कूंडळ ऊपर चढियो । ताहरां भाईयां कह्यो - 'जी, हेकरसू तो बैररो वैर लेग्रो ।” ताहरा भेळू ऊपर चढिया । 8 प्राचानण जोगीनू सीख दीवी ताहरां पछै थाळी माहै मूंग घात बाजोट ऊपर राखिया हुंता । हेक दिन रातरा थाळी महिला मूग कूदण लागा ।" ताहरा प्राचानण रामचदरे पर्गे हाथ देअर जगायो । कह्यो - 'ठाकुरां ! उठो । कटक प्रायो ।' ताहरां रामचद कह्यो - 'जी, कठे छै कटक ? 1° म्हारा भाईयांनू कई दिन हुवा, जोनसाळिया थका रहै छै 111 कटक कोई नही ।' तद आचानण कह्यो - 'मूंगां साम्हां देखो ।'22 ताहरां रांमचदजी मूंग कूदता दीठा । ताहरां कह्यो–'कासू ं छै ?'13 ताहरां कह्यो - 'बोर घोडीरे पोडासू मूंग कूदे छ । घोड़ी थांरी सीममे आई । 24 ताहरा रामचंदजी कोटड़ी श्राया नै ढोल दरायो ।" लोग भेळो हुवो ।" इंदारै साथ नै सांगमरावरे साथ 14 16 1 तब मेरे लिये न तो ससुरालमे और न पीहरमे कही भी जगह नही । 2 तव इस दुविधाका विचार कर रामचदके पल्ले ग्रा लगी हू । 3 श्रव ठाकुर मेरी श्रोरका ख्याल छोड दें । 4 बछेरा लेनेको गई है । 5 इस पर चानण रीस कर रामचद ई देके घरमे घुम गई । 6 तव सागमरावने उठ कर चढाई करने के लिए नगाडा वजवाया । 7 पहले एक बार तो स्त्रीवा वैर लेयो । 8 तव थालीमे मूग डाल कर बाजोट ( पट्टे ) पर रखे 10 कहाँ है कटक ? II थे । 9 एक दिन रातको थालीके प्रदरके मूग कूदने लगे । मेरे भाइयोको कई दिन हुए, 13 यह वया वति है ? 14 आ गई । 15 तव रामचदने इकट्ठे हुए | कवच धारण ही किये रहते है । 12 भूगोकी श्रोर देखो । वोर घोडी की टापोसे मृग कूद रहे हैं । घोडी तुमारी हदमे कोटडी मे श्राकरके युद्धका ढोल वाजवाया । 16 लोग

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