Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 283
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २७५ दूहा पहली तो हिंदू हुता, पीछ भये तुरक्क । ता पीछे गोले भये, तातै वडपण तुक्क ॥ १ धाये काम न पावही, क्यांमखांनि गदेह । बंदी आद जुगाद के, सैद नासर हदेह ॥ २ ॥ इति क्यांमखान्यांरी वात सपूर्ण ।। ___दोहोका भावार्थ- पहले तो यह हिंदू थे और पीछे तुर्क हो गये । जिसके पीछे ये गोले हो गये । इसलिये बडप्पन तुक्के जितना ही (थोडा ही) रहा ॥शा क्यामखानी गदे है वे अधाये हुए काम मे नही पाते, क्योकि प्रारभसे ही वे सैयद नासिरके वदे (चाकर) रहे है। इतिहासका प्रसिद्ध और मूल्यवान ग्रथ है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानसे यह सर्व प्रथम प्रकाशित हो चुका है। जान कविके बुद्धि सागर, सतनावा और अलफखाकी पैडी आदि ७५ नथ जाननेमे पाये है। फदनखाकी पुत्री ताज बीवी भी इसी वशकी श्री कृष्णकी परम भक्त-कवयित्री थी और गोस्वामी विट्ठलनाथजीकी शिष्या थी। ताज सम्राट अकवरकी पत्नी थी । सम्राट इसकी इस भक्ति-भावनासे आकर्षित था। इसकी कोई दर्जन भरसे अधिक रचनाएँ जानने में आई है। दौलतखा आदि कई विद्यारसिक, भक्त और कवि इस वशमे हो गये है।

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